रूबरू
रूबरू
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जब इश्क़ की नुमाइश ने
हमेशा के लिए
दरम्यान फासला ला खड़ा किया
हमें ख़ामोश रहना पड़ा
जाने कब तलक़
हमें बेबाक़ी भूलकर निगाहों की
उन्हें गुनेहगार बनाना पड़ा
रूबरू थे हम दोनों
फिर भी सदियों का फासला
मानो उन दो किनारों की तरह
जो साथ साथ तो चल सकते है
मगर कभी मिल नहीं सकते
क्षितिज उनके मिलने का
आभास तो कराता है मगर
यह एक कोरा भरम है..