लगाव
लगाव
माँ अपने बच्चे को जीने का सलीक़ा
प्यार से सिखाती है,
उसे मातृत्व कहते है।
लेकिन गुरु अपने शिष्य का
मार्गदर्शन हर पड़ाव में करते हैं,
वह लगाव है।
पिता की डाँट फटकार से
बच्चे के तरीके सुधरते हैं,
उसे पितृभाव कहते हैं।
लेकिन गुरु अपने शिष्य के साथ
कठोर न रहकर भी
उनके तरीके सुधारते हैं,
वह लगाव है।
भाई अपनी नौटंकी से चिढ़ाता है,
उसे भाईचारा कहते हैं।
गुरु अपनी माँगे स्वीकार
न होने
तक नहीं जाने देते,
वह लगाव है।
बहन अपनी नादानी से
दिल खुश कर जाती है,
उसे बहनपना कहते हैं।
गुरु की मुस्कुराहट देख
शिष्य का दिल खुश हो जाता है,
वह लगाव है।
दोस्त गलत को भी सही मानकर
अपनी दोस्ती निभाते हैं,
गुरुअपने शिष्य की गलती
माफ कर उन्हें
सही का मूल्य सिखलाते हैं,
वह लगाव है।
इसी तरह हर रिश्ते का
मूल्य होता है,
लेकिन गुरु का अपने शिष्य के
प्रति लगाव अमुल्य होता है।