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Jitendra Kapoor

Abstract

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Jitendra Kapoor

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मै भूला पथिक

मै भूला पथिक

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मैं भूला पथिक,

जाना कहाँ- मंजिल भूल गया

निकला था वाट खोजने,

खुद को भूल गया।


सरपट राहें जो चुनी,

श्रम मेहनत ही भूल गया

ठोकर क्या होती है,

पत्थरों से टकराना भूल गया।


विटप की छांह में,

आग में तपकर सोना होना भूल गया

राह में कुछ गुलाब संजोये,

कांटों में दामन उलझाना भूल गया।


कुछ यूं लिपटी मोह माया,

पिता की आशा भूल गया

नश्वर इस जगत में,

मैं अनश्वर को ही भूल गया।


आया था चौरासी पारकर,

बैकुंठ सुख पा, सब भूल गया

है परम पिता माफ करना,

तेरी चरण रज मस्तक लगाना भूल गया।


तूने भेजा था पुरषार्थ करने,

मैं अधम परमार्थ करना भूल गया

मेरा बैरी मैं हुआ, नहीं दोष किसी का,

अंतरमन में झांकना भूल गया।


अजब तमाशा प्रभु तेरा संसार,

डोर तेरे हाथ, मैं ठुमकना भूल गया।


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