जीवन-संग्राम
जीवन-संग्राम


डटे रहना राह के पथिक
के मंजिल अभी दूर बहूत है।
घना अंधेरा, राह में रोड़े
गुलाबो से झांकते, शूल भरपूर बहूत है।
पग पग पर खड़ी सुरसा
आत्मा में तेरे बजरंगी सा नूर बहूत है।
कदम ज्यों ज्यों बढ़ेंगे मंजिल को
कंटक बन फूल, चुभन को चूर बहूत है।
हँसी तमाशा भी बनेगा तेरा
सहना होगा तुझको, दुनिया क्र
ूर बहूत है।
यहाँ न रुक, और आगे बढ़
तुझे गिराने दुनिया मसरूर बहूत है।
बढ़ा कदम, ताल से ताल मिला
भाग्य को, मेहनतकश पर गुरूर बहूत है।
क्यूं सोंचना कल क्या होगा
तेरा आज ही कल का स्वरूप इतना बहूत है।
गर जाना निज की शक्ति को
चरणो में हिमालय मन में दहकता सुरूर बहूत है।
कल तक थे जो बैरी सारे
हो समर्पित, चरणधूली पाने को आतूर बहूत है।