बस इतनी सी आरजू
बस इतनी सी आरजू


बस इतनी सी है आरजू मेरी,
जब मिलूं मिट्टी में, मुझे दीवारों पर नहीं
दिलों में जगह मिल जाऐ।
बस इतनी से है आरजू मेरी,
जब जाऊं जहाँ से, मुझे सांत्वना नहीं,
चार कांंधे प्यार भरे मिल जाऐं।
बस इतनी से है आरजू मेरी,
जब लगाऊं उसे गले,
अमृत के घूंट नहीं, चार यार- मेरा परिवार
मुझे हँसते हूऐ विदा कह जाऐं।
बस इतनी सी है आरजू मेरी,
जब दामन उसका थामूं,
अश्कों की धार नहीं,
ढोल नगाड़ो की बारात साथ हो जाऐ।
बस इतनी सी है आरजू मेरी,
जब मै उसका हो जाऊं,
गमों का गान नहीं,
मेरी आवाज, मेरे शब्द,
मेरी पहचान हो जाऐ।
बस इतनी से है आरजू मेरी,
जब मै उसका दीदार करूँ,
मन में पछतावा नहीं,
कर्मो का हिसाब किताब चुकता हो जाऐ।
है परमात्मा, कुछ इस तरह
बुला लेना मुझे
तू लेने आये और
संसार प्रकाशमय हो जाऐ।