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Jitendra Kapoor

Abstract

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Jitendra Kapoor

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हमें बुझना होगा

हमें बुझना होगा

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जिंदगी जिंदादिली का नाम है, तो मुरझाया क्यूं है

वक्त की तन्हाइयों में आखिर चेहरा छिपाया क्यूं है।


गर खुदा मिले रोककर पूछ लूं उससे

राह कोनसी चलना है, मंजिल मिले जिससे।


वक्त की तपिश ने जला डाला मेरा आशियाना

मानो पतझड़ ने छिना पत्तों से ठिकना।


शिकवा किससे करूँ, कहीं वफा की बू नहीं

अरमान ताकते है जिन्हें, वही नजर देखती नहीं।


राहों का अंदाज नहीं था कि अंधियार घना होगा

बेवक्त चिराग जलाऐ, बुझाऐ, अब तो चिरागों ने भी कह दिया-


हमें बुझना होगा- हमें बुझना होगा।


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