STORYMIRROR

आँखों की केमेस्ट्री

आँखों की केमेस्ट्री

1 min
358


उफ्फ़ चार आँखों की केमेस्ट्री भी

क्या कम्माल होती है साहब,

क्या जाने क्या बातें कर लेती है

लब खोलने की जरूरत नहीं

ये बिना बोले ही बोल देती है !


इंसान की आँखें जो बहुत कुछ

कहती है देखती है, हंसती है, रोती है,

कुछ राज़ को हवा देती है,

कुछ सीने में दफ़न करती है !

 

कभी मुखर होती है,

कभी चुप रहती है 

आग उगलती है कभी

तो कभी फूल बरसाती है,

कभी वो भी देख लेती है

जिसे अनदेखा करना होता है, 

कभी कुछ भी नहीं देखती

जो देखना होता है !


एक दरिया है इंसान की आँखें

कभी बहा ले जाती

है हर दर्द के ढेर को 

कभी खून के आँसू पी जाती है

कभी बरसती है कभी तरसती है !


असंख्य भावों को पनाह में रखती है

कभी नोच लेती है एक तलवार सी,

कभी प्यार के आबशार सी

पलकों के भीतर हँसती है,

मन में बसी कल्पनाओं को

ख्व़ाबों से संजोती है !


दिल के एहसासों को तोलती है

मन की मुरादें फूट पड़ती है,

आँखें कहाँ चुप रहती है

आईने सी इठलाती

सच को बयाँ करती है.!


दो कटोरियों के बीच खेलती

पुतलियों की माया भी अजीब है

खुली रहती है तो हलचल मचाती है

बंद होते ही एक ज़िंदगी का

सफ़र खत्म करती है आँखें।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract