सुकून से रह
सुकून से रह
संशय को परे कर सुकून से रह,
ये मुल्क जितना मेरा है
उतना तेरा भी है सदियों से दोनों
का इसी सरज़मीं पर बसेरा है..
निर्विवादित बात है! ज़ुड़ा हूँ मैं रूह की गहराई से,
सदियाँ बीती तुम ठहर न पाएँ,
तभी तो मिट्टी को मैं माँ और तुम
समझते हो महज़ धूल का डेरा है..
न बाँटो इंसानियत को हरा केसरिया के तराजू में,
न होती हरी पत्तियाँ साँस कहाँ हम ले पाते,
न होता आफ़ताब केसरिया उर्जा के स्त्रोत कहाँ से आते..
फ़र्क कहाँ करता है तिरंगा दोनों रंग
समेटे खुद में आसमान को छूता है,
हाथ दे हाथों में अपना धर्म धुरी को
भूलकर हम सब वतन की शान बढ़ाते है..
ठहरो, जुड़ो, सोचो दिल जब हिन्दुस्तानी तो
धड़कन की धक-धक पर नाम क्यूँ उसका है ?
पूरवार कर खुद को, प्रस्थापित कर !
फिर तू भी कहेगा ये मुल्क जितना मेरा उतना ही तेरा है।
यहीं कर्म कर, यहीं धर्म रख इसी मिट्टी में दफ़न होना है,
मज़हब का मिट्टी से क्या लेना-देना ईश्वर-अल्लाह जब एक है,
समझकर भी नहीं समझते इसी का तो रोना है।