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Kasturi Jagtap

Abstract

4.7  

Kasturi Jagtap

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लम्हे

लम्हे

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देखा है दरख्त को

झड़ते हुए हर साल,

सालों साल

और हम उसे खोने का

गम क्या करें,

जो हमारा था ही नहीं ?


मना लिया था ख़ुद को

पर ये कम्बख़्त दिल

तलाशता आज भी

उसी शिद्दत से है।


हाल तो ये है कि

कभी रुबरू हो भी जाते हो

कागज पर उतारे

चंद लब्जों में।


बस ऐब इस बात का है कि

ना उन लब्जों में क़ैद

वो लम्हा थमता है और

न ही उन लम्हों में

क़ैद वो यादें।


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