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Praveen Gola

Abstract

4  

Praveen Gola

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दिन सुहाने आ गए

दिन सुहाने आ गए

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300



दिन सुहाने आ गए ,
सरसों के खेत लहरा गए ,
वसंत ऋतु के आगमन पर ,
खुशियों के रँग छा गए |

चारों और फूलों ने खिलकर ,
सबके मन को मोह लिया ,
सुहानी हवाओं ने भी बहकर  ,
नए मौसम का वस्त्र ओढ़ लिया |

भँवरों ने जी भर - भरकर ,
फूलों का रसपान किया ,
रँग - बिरंगी तितलियों ने ,
बगीचे में नृत्य - गान किया |

सरोवरों में खिले कमल ,
ऐसे मस्ती में चूर हुए ,
मानो जल के तालाबों में ,
दुख के बादल दूर हुए |

आसमान में पक्षियों ने 
जी भर कर मारी किलकारी ,
बसंत ऋतु आ गई है ,
चलो सब मिल करो तैयारी |

नई फसलों के पकने का ,
इंतजार खत्म होने वाला है ,
किसान भाईयों को भी अब  ,
मेहनत का फल मिलने वाला है |

ऋतुराज का स्वागत करने ,
सिट्टे भी सिर उठा इतराते हैं ,
कमसिन बालाओं की चोटी के ,
गुंथे फूल खुशबू फैलाते हैं |

प्रकृति ने बदला रूप निराला ,
हर जीवन में उमंग का भरा प्याला ,
चलो देखें नव जीवन का उदय होना ,
वसंत ऋतु में सबका एक साथ घुलना ||












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