कशिश सी तो होती है
कशिश सी तो होती है
सब नशों से बेहतर नशा होता है चंद सवालों का,
कम से कम उनके जवाबों में एक कशिश सी तो होती है।
हमने देखा है पत्थरों को भी मोम बनते हुए,
तेरी नज़रों की तपिश में भी एक कशिश सी तो होती है।
कभी खुद से मिलो तो जानोगे हकीकत-ए-इश्क़,
इन टूटे दिलों की दास्तां में भी एक कशिश सी तो होती है।
वो जो दर्द बाँट गया मुस्कुरा के हमसे,
उसकी छोड़ी हर निशानी में भी एक कशिश सी तो होती है।
लोग कहते हैं सुकून ढूँढो, मगर जानें कैसे,
बेचैनियों की इन गलियों में भी एक कशिश सी तो होती है।
तू ख़्वाबों में आके क्यों इतना सजा करता है,
इन अधूरी रातों की तन्हाई में भी एक कशिश सी तो होती है।
जब महफ़िल में तेरा नाम लिया करती हूँ मैं,
हर बेगाना चेहरा भी तब एक कशिश सी तो होती है।
हमने जो लफ्ज़ लिखे, वो भीग गए अश्कों में,
तेरी यादों की बारिश में भी एक कशिश सी तो होती है।

