बेवफ़ाई की दास्ताँ
बेवफ़ाई की दास्ताँ
वो मीठी बातों से तेरा दिल बहलाएगा,
पर हक़ में तेरे वो कभी भी न होगा।
जो अपने ग़म को हर रोज़ कहानी बनाएगा,
तेरे लिए सच्चा वो आशना न होगा।
कभी ग़ौर से देख उसकी आँखों में झाँक कर,
तेरा नाम उस सहरा में लिखा न होगा।
जो तन्हाई का अफ़साना रोज़ सुनाएगा,
उसी घर में रातें वो किसी और के संग गुज़ारेगा।
वो अपने गुनाहों पे पर्दे बहुत डाल जाएगा,
मगर सखी, वो नक़ाब अब नया न होगा।
जो खुद की चौखट पे चराग़ न जला पाया,
तेरे आँगन में उजाला वो लाएगा क्या?
तेरी वफ़ाओं को वो क़िस्सों में गुम कर जाएगा,
तेरे जज़्बात का मोल वहाँ क्या न होगा।
उसकी ज़बां की मिठास पे अब एतबार न कर,
जो बेवफ़ा था किसी का, वो तेरा न होगा।
कभी उस अजनबी की गलियों में चलकर देख,
तेरी तरह कोई और भी वहाँ ठगा न होगा?
सो अब सखी, दिल को समझा और संभाल ले तू,
जो तेरा नहीं, वो तेरा कभी न होगा।
