क्राँति का नया अर्थ
क्राँति का नया अर्थ
२६ जनवरी की सर्द सुबह को, गर्म चाय की चुस्कियां लेते हुये।
गर्वित अनुभव कर रहा था, टीवी पर सेना की परेड देखते हुये।
कि अचानक एक आवाज आयी, और लुप्त हो गयी पिक्चर सारी।
तथा स्क्रीन पर आ गए भगत, सुभाष और अन्य वीर क्रांतिकारी।
चेहरे पर स्वतंत्रता मिलने का हर्ष नहीं, अपितु था एक विचित्र विषाद।
रक्तिम नेत्रों में निराशा-नीर, व आक्रोश-अग्नि का मिश्रित उन्माद।
विस्मय और भय के बीच डोलता हुआ, एक पुतले सा था मैं स्तब्ध।
तभी गूँज उठे मेरे पूरे घर में, उन वीरों के रोष भरे ओजस्वी शब्द।
लाल किले पर निज ध्वज लहराये, हमने था जीवन उद्देश्य बनाया।
उसी किले पर अपने ध्वज का फिर, कैसे क्यों तुमने सम्मान घटाया।
इस भारत की आजादी हेतु हमने, प्राणों को भी था दाँव पर लगाया।
उसी आज़ादी का ऐसा दुरूपयोग देख, आज लज्जा से सर झुकाया।
जब देखो तब हड़तालें करके, इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हो।
भारतवासियों के खून पसीने से बनी, राष्ट्र सम्पति को सरेआम जलाते हो।
विश्वविद्यालयों में एकत्र हो कर, भारत तेरे टुकड़े होंगे, ऐसा चिल्लाते हो।
और तद्पश्चात ऐसे घृणित नारों को अभिव्यक्ति की आजादी बताते हो।
मूर्खों वो समय कुछ और था, अब समय की है और पुकार।
स्वतंत्र राष्ट्र है लोकतंत्र है, सबको है मत का पूरा अधिकार।
अब जनता ही जनार्दन है, चुनती है स्वयं वो अपनी सरकार।
स्वतंत्रता का अर्थ निरंकुशता नहीं, सत्य करो तुम ये स्वीकार।
उस समय थी बस एक चुनौती, भारत को कैसे स्वतंत्र करायें।
इस वक़्त में है अब नये लक्ष्य, निज राष्ट्र को कैसे और बढ़ायें।
क्राँति का अर्थ है बदल गया, अब हिंसा का नहीं यहाँ स्थान।
नए युग के नए मोर्चे हैं अब, जैसे शिक्षा, उद्योग, और विज्ञान।
सुनकर उन सबकी ऐसी बातें, नयनों में नीर छलक आया।
दृगजल से प्रक्षालित मन में, ज्ञान का एक नव दीप जलाया।
प्यारे देश वासियों सुन लो, वीर क्रांतिकारियों का ये सन्देश।
बंद कर दो ये व्यर्थ तमाशा, ख़त्म करो कटु कलह कलेश।
कभी इनके बलिदानों से न, ऋणमुक्त हम सब हो पायेंगे।
कोटि कोटि कृतज्ञ कंठ यहाँ, गीत भला कितने ही गायेंगे।
नहीं होगी पर्याप्त हम सबकी, भावुक शब्दों की पुष्पांजलि।
हम भी जब देश निर्माण करें, तभी पूर्ण होगी ये श्रद्धांजलि।