खौफ़
खौफ़
खौफ़ लगता है उन चेहरों से,
जिन चेहरों के पीछे न जाने कितने चेहरे हैं छुपे..
खौफ़ लगता है उन बातों से,
जिन बातों के पीछे कौन से राज होते हैं छुपे ...।।
खौफ़ लगता है अंधेरी रातों में,
रास्तों से गुजरते हुए....
किस चेहरे में छिपी दरिंदगी कब बाहर आ जाये,
और छीन ले जाए वो मासूमियत भरी होठों की हंसी...!!
खौफ़ लगता है मां के आंचल को छोड़ते हुए,
वो माँ के लाड की भीनी भीनी खुशबू...
दूर ना कर दे वक़्त का पहिया मुझे से,
लगता है खौफ़ उसकी उंगली को छोड़ते हुए...!!
खौफ़ लगता है उन चिराग़ों के बुझने का,
जो जल रहे हैं उम्मीदों की आस में...
कहीं धराशयी ना हो जाए वो सारे ख्वाबों का ज़खीरा
और बुझ कर कहीं ना बन जाए राख की ढेरी लगता है खौफ़...!!