इंसानियत हुई शर्मसार
इंसानियत हुई शर्मसार
कौन थे यह किस जात के थे,किस धर्म में यह सिखलाया है।
पूछ के धर्म करा नरसंहार,ये मानव रूप में राक्षस कहाँ से उतर आया है।।
हो गई इंसानियत शर्मसार,जिंदगी को खिलौनों का खेल बनाया है।
चंद मिनट में हंसते लोगों का,जीवन खून से लथपथ कर डाला है।।
आंखों के सामने लोगों ने,बेसुध होते अपनों को गिरते पाया है।
नई नवेली दुल्हन ने,अपने जीवन साथी को पल भर में गवाया है।।
इंसानियत पर हैवानियत ने,गोलियों का ऐसा तमाचा बरसाया है।
की एक पल में चारों तरफ,लोगों का खून पानी सा बहाया है।।
अपने ही घर में बने बेगाने,यह कैसा दिन दिखलाया है।
तार तार हो गई मानवता,किस ने जुल्म का अंगार बरसाया है।।
राजनीति मत करो लोगों,देखो किसने क्या-क्या यहाँ गवाया है।
जाने कितने घरों में आज,बाती और ना चूल्हा जल पाया है।।
बातों से नहीं काम चलेगा उठो संकल्पित होकर सब।
दिखला दो क्या सजा है उनकी,जिसने मासूमों का खून बहाया है।।
मधु गुप्ता "अपराजिता"
