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Rajeewa Lochan Trivedi Varidhi Gatoham

Tragedy

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Rajeewa Lochan Trivedi Varidhi Gatoham

Tragedy

चिड़िया चक्षु चुनाव

चिड़िया चक्षु चुनाव

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राजनीति सुविधा हुई ,बनी आज व्यवसाय।

मीठा-मीठा गप्प सब, कड़वा थूकत भाय।1।


होता है अपराध यदि ,शासित स्वयं प्रदेश।

चुप्पी उस पर साधना, दल नेता निर्देश।2।


ठीक यही अपराध जब, होता अन्य प्रदेश।

धरती सर पर उठाना ,दल को तब आदेश।3।


निज प्रदेश अपराध पर, मौनी बाबा मस्त।

जब प्रदेश हो दूसरा ,पूर्ण मुखर परितप्त।4।


कृत्य सभी दल कर रहे, नहीं कोय अपवाद।

सुविधा की यह व्यवस्था, जनता में अवसाद।5।


दल होते सर्वोच्च अब, गौढ हुआ अब देश।

कोरोना का संक्रमण , फैला देश प्रदेश।6।


 दूजा भी इक संक्रमण, अवसर वाद प्रधान।

 राजनीति की रोटियां, सेंंकत  पंथ-प्रधान।7।


टीका इसका भी बने ,जनता की है मांग।

फिर कोई नेता नहीं, कर पाए नव स्वांंग।8।


परजीवी नेता हुए, मुद्दे पर आरूढ़।

दल की गााड़ी खिच रही, जनता हुई विमूढ।9।


 भावोंं की संवेदना, का चलता व्यापार।

 विज्ञप्ति बिक रहींं हैं , घड़ियाली उद्गार।10।


सत्ता दल की विवशता, बन जाती हथियार ।

लेकर उसको विपक्षी ,करते खूब शिकार।11।


अपराधों के निवारण ,हेतु नहीं प्रस्ताव।

फसल मतोंं की काटना, बस इतना समभाव।12।


अर्जुन से दल हो गए ,चिड़िया चक्षु चुनाव।

कुर्सी पांचाली हुई , जन-जन लगते घाव।13।


कहां प्रश्न अब न्याय का ,यह अब दल सापेक्ष।

जनता के परिप्रेक्ष्य ना, यह चुनाव प्रक्षेप।14।


 न्याय और अन्याय नहीं ,होते अब निरपेक्ष।

 यदि लाभ तो न्याय , नहीं न्याय विक्षेप।15।


 


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