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सोनी गुप्ता

Tragedy

4.5  

सोनी गुप्ता

Tragedy

अपनी व्यथा किसे सुनाऊँ

अपनी व्यथा किसे सुनाऊँ

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कुछ बीती बातें हैं मन में, 

कब से जी रहा था कल में, 

दर्द भर गया कैसा जीवन में,

नैनों से अश्रु कैसे छलकाऊँ

जो बीत रहा उसे कैसे बताऊँ, 

अपनी व्यथा मैं किसे सुनाऊँ।


जीवन के तप्त मरुस्थल में

बढ़ गई है पीड़ा इस तन में

सजल आंखों का भ्रम यह

जो कब से तुम्हें ढूँढ रही है

रास्ता अंजाना सा लगता है

ठौर कहाँ,किस ओर जाऊँ,

एक अनजान सा डर खींचें, 

जो बीत रहा उसे कैसे बताऊँ, 

अपनी व्यथा मैं किसे सुनाऊँ।


मुश्किलें कई खड़ी राहों में, 

लोग पर कतरने को तैयार, 

सभी बेजान करने को बैठे, 

मायूसी के दामन ने जकड़ा, 

उसमें उलझन सी गई हूँ मैं, 

इस समस्या को कैसे सुलझाऊँ, 

जो बीत रहा उसे कैसे बताऊँ, 

अपनी व्यथा मैं किसे सुनाऊँ।


क्यों चुभती हैं टीसें मन में, 

जिनका अब सरोकार नहीं, 

यादों का सैलाब ऐसा छाया, 

खुद को खाली हाथ ही पाया,

कैसे इन बातों से खुद को बचाऊँ,

जो बीत रहा उसे कैसे बताऊँ, 

अपनी व्यथा मैं किसे सुनाऊँ।


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