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Rajeewa Lochan Trivedi Varidhi Gatoham

Abstract

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Rajeewa Lochan Trivedi Varidhi Gatoham

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निर्लज्ज व्योम संस्कारी धरा-3

निर्लज्ज व्योम संस्कारी धरा-3

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जान सखी की विवशता, "प्राची" दिशा अधीर।

तत्क्षण बनूंं सहाय मैं, सोच रही गंभीर।15।


नहीं रहा सामीप्य में, एकल वस्त्र विशेष।

जिसे डाल वह हर सके,"ऊषा" कष्ट कलेश।16।


अंग वस्त्र इक ओढ़नी ,अंधकार परिरूप।

इसे हटानेेे से कहीं, हसे न उस पर "धूप"।17।


मगर वेदना शमन के ,लिए लिया संकल्प।

कष्ट निवारण अन्य का, चाहे हास्य विकल्प।18।


त्यागा मन की व्यथा को, झटका तुच्छ विचार।

उचित ध्यान पर-वेदना , है जीवन आधार।19।


अंधकार की ओढ़नी, ढ़ांक अनावृत देह ।

पर दुख कातर भावना, जीवन निस्संदेह।20।


पश्चिम में होते नहीं, ऐसे उच्च विचार।

"प्राची-दर्शन" सार है ,अखिल विश्व परिवार।21।

आगामी अंक दिनांक 28 /3/ 2021



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