STORYMIRROR

अनु उर्मिल 'अनुवाद'

Tragedy

5  

अनु उर्मिल 'अनुवाद'

Tragedy

गौरैया

गौरैया

1 min
690


गौरैया,

जाने कहाँ उड़ गई तुम

अपने मखमली परों में बाँध के

वो सुबहें, जो शुरू होती थी तुम्हारी

चहचहाहटों के साथ और वो शामें,

जब आकाश आच्छादित होता था तुम्हारे

घोसलों में लौटने की आतुरता से...!!


वो छत पर रखा मिट्टी का कटोरा सूखा पड़ा है 

न जाने कब से...

आँगन में नहीं बिखेरे जाते अब पूजा की 

थाली के बचे हुए चावल...!!

एक मुद्दत से नहीं देखा मैंने तुम्हें अपना 

नीड़ बुनते...

और तुम्हारा अपने बच्चों को खाना खिलाने 

का दृश्य भी अब धुंधलाने लगा है 

मस्तिष्

क के पटल से...!!


अब जब मशीनों के शोर से घुटन होने 

लगती है तो कानों को याद आता 

है तुम्हारा चहचहाना..!!

सोचती हूँ कोई बच्ची कैसे जान पाएगी

कि क्या होता है चिड़ियों की तरह

आकाश में उड़ना...!!


हे प्रकृति की मासूम प्रतिनिधि! हम 

तुम्हारे अपराधी हैं..

हम लालची इंसानों ने छीना तुमसे तुम्हारा

आवास, तुम्हारे हिस्से का आकाश,

और तुम्हारी परवाज़...!!

दया आती है मुझे हम इंसानों की लाचारी पर ,

हमें हर चीज का महत्व समझ तो आता है, 

मगर उसे खो देने के पश्चात..।


Rate this content
Log in

More hindi poem from अनु उर्मिल 'अनुवाद'

Similar hindi poem from Tragedy