आभास
आभास
मुझे नहीं दिखाई देते तुम,
कभी चाँद और सितारों में!
मैंने नहीं किया महसूस तुम्हें,
बारिश की रिमझिम फुहारों में!
मैंने सुनी नहीं आवाज़ तुम्हारी,
पत्तों की सरसराहट में!
पाया नहीं स्पर्श तुम्हारा,
मैंने इन बहती हवाओं में!
हाँ! बेमानी है तुम्हें ढूंढना ,
जग के किसी भी नज़ारे में!
गर पाना ही चाहते हो खुद को,
तो देखो मेरी निगाहों में!
जिस दिन तुमने पहली बार,
मुझसे नज़र मिलाई थी!
उस दिन तुमने इन आँखों में,
अपनी छवि बसाई थी!
जिस दिन अपनी अंगुलियाँ,
इन ज़ुल्फों में उलझाईं थी!
उस दिन अपनी खुशबू से तुमने,
मेरी जुल्फें महकाई थी!
जब तुमने मेरे हाथों को,
अपने हाथों में थामा था!
तब मेरे रोम रोम में तुमने,
अपना स्पर्श उतारा था!
जब यूँ ही अचानक तुमने,
मुझ को गले से लगाया था!
उस पल अपनी धड़कन का सुर,
मेरी धड़कन से मिलाया था!
जब कभी तन्हाई में अपने,
दिल पर हाथ मैं रखती हूँ
हर आती जाती धड़कन में,
मैं नाम तुम्हारा सुनती हूँ!
पिया तुम वो कस्तूरी हो,
तुम बसे हो मेरे अंतस में!
फिर क्यों तुम को ढूंढूं मैं,
मृग की तरह बाहर जग में!