चाहत की शिद्दत
चाहत की शिद्दत
आज मैंने तुम्हें बादलों में देखा
तुम्हारी सुंदरता साँसे लेती मुझसे बातें कर रही थी...
तुम्हारी त्वचा का सुनहरा रंग
मुझको अत्याधिक प्रभावित किए जा रहा था.....
आज मुझे तुम्हारी शिद्दत से जरूरत है,
मैं तुम्हें जानने के लिए, छूने के लिए और पाने के लिए बेताब हो उठा......
मैंने सपने को छूने का दु:साहस किया पर तुमने मुझे निराश कर दिया,
बादल छंट गए तुम्हारी तस्वीर को मेरी कल्पना में मूर्त छोड़कर....
वापस रात को मेरे हाथ तुम्हारी पनाह को तरसते मेरे तसव्वुर से बातें कर रहे थे..
बहुत कुछ कहना है तुम्हारे कँधे पर ठोड़ी टिकाकर तुम्हारे कानों में.......
मेरी कल्पना तुम्हारे तन के एक एक अणु को प्यार करने बेताब थी......
पर तुम सपना थी मैं दौड़ा तुम्हें छूने
और आँखें खुल गई......
इत्तेफ़ाक़न भोर की पहली रश्मि में खिलखिलाते तुम मुस्कुरा रही थी....
मेरी कल्पना का असीम आसमान हो तुम दुनिया की हर शै में रची बसी।