लिखने लगे हो
लिखने लगे हो
देखते हैं आजकल बहुत लिखने लगे हो
कोई ग़म है या कहीं और उड़ने लगे हो
हवाओं का मंजर है सर्द मगर फिर भी
पसीने से तर बतर क्यों रहने लगे हो
बिखरे बाल और अधरों पर मुस्कान
बिन प्रयोजन यत्र तत्र भटकने लगे हो
जिन हाथों में रहता था सब्जी झोला
अब उसके जगह रुमाल रखने लगे हो
घर हुआ करता था बगिया जिसका
छोड़ उसे उपवन में टहलने लगे हो
खुशबुओं का क्या, गुण है उड़ जाना
फिर क्यों उसकी राह तकने लगे हो
तुम ही मृग तुम ही कस्तुरी
फिर मरीचिका के पीछे क्यों भागने लगे हो
जिनके अश्क का चातक व्याकुल
उन अश्कों को क्यों बेवजह बहाने लगे हो
नभ है तो चांद निकलेगा ही
क्यों परेशान सा रहने लगे हो
मन की पीड़ा ,अश्कों की स्याही से
क्यों बार बार ऐसा लिखने लगे हो ।

