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Rajeshwar Mandal

Tragedy

4  

Rajeshwar Mandal

Tragedy

कैसे मैं हार गया

कैसे मैं हार गया

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   कोई बहुत इतराया होगा 
   तुम वहां गुमशुम बैठी होगी 
   बेफिक्र था जिस जीत को लेकर 
   पलक झपकते वहां मैं हारा होगा 

   मन की कुछ बातें बहुत हिलोरा होगा 
   पर हो बेबस तुम कुछ न कर पायी होगी 
   बेवजह खनक जाती थी कभी जो पायल
   आज उसकी घुंघरू भी चुपचाप रही होगी 

   एक हूक सी उठी तो होगी मन में 
   पर हो बेबस सीने पर हाथ रखी होगी 
   गजरे की सुगंध बनी होगी दूर्गंध
   चांद सी बिंदिया से माथे दुखती होगी

   पंडालों की रौशनी में होगा अंधियारा 
   लहंगा चुनरी सब दिखते बेरंग होगा 
   शहनाईयों के गुंज में होगी तन्हाईयां 
   सिसकियां तुम्हारी कोई न सुनी होगी

   फेरे में जो पांव लड़खड़ाये होंगे
   सप्तपदी में जेहन से मेरा ही नाम आया होगा 
   दहल गया होगा तुम्हारा तन मन बेकदर 
   जब हाथ एक अजनबी ने थामा होगा 

   हो सकता है कुछ हवा उस वक्त बही होगी
   शायद टहनी से मैं पत्ता बन वहां गिरा होगा
   बारिशों की बूंदें जो एक आध पड़ी होगी तुम पर 
   सच मानो मेरा ही अश्रु वहां बरसा होगा 

    पिया संग रहते रहते 
   अब दिलो-दिमाग में वही रच बस गया होगा 
   तुम तो अब हर शाम 
   प्रियवर के लिए ही सजती संवरती होगी 

   अब पुराने ज़ख्म कुरेदने से कया फायदा
   पर सच सच बताना 
   जिस जीत को लेकर बेफिक्र था मैं 
   क्या लोक लाज में यह खेल तुम हारी थी ?
                        


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