युवावस्था
युवावस्था
युवावस्था बसंत काल,
सुगंधित करती देशभाल ।
जगदीश ने दी अखंड शक्ति,
सहस्त्रधार सी फूट पड़ती।
वर्षा कालीन शोण भद्र,
प्रलय कालीन प्रबल प्रचंड।
वसंत कालीन मृदु कालिका,
उज्जवल प्रभात सी शोभा ।
स्निग्ध संध्या सुंदरी छटा,
मधुर जैसे शरद चंद्रिका ।
ग्रीष्म मध्यान्ह का उत्ताप,
भाद्रपदी अमावस्या रात।
अर्धरात्रि कालीन भीषणता,
शरद रात्रि सी चंचलता ।
विश्व पटल पर डोल रही,
छद्म गठबंधन खोल रही।
रणचंडी की ललाट रेख,
काॅंपता विधर्मी देख-देख।
यश दुन्दुभि का तुमुल नाद,
नदधारा कल कल निनाद।
विजय जयंति सुदृढी दंड,
उत्ताल तरंगमय सागर उद्दंड।
भीष्म की ललकार विकराल,
प्रथम मिलन का चुंबन रसाल।
रक्त रंजित हस्ताक्षर महान,
लिखते देश का गौरव गान।

