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Sudha Sharma

Tragedy

4  

Sudha Sharma

Tragedy

एक सवाल

एक सवाल

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 कोलकाता की बेटी का सवाल 

तन पर पूरे थे कपड़े, श्वेत कोट भी डाला था ।

गले में आला मतवाला, जो स्वास्थ्य का रखवाला था।

 फिर भी कुछ गुंडो ने आकर,निरर्थक मुझ पर वार किया ।

सृष्टि की संचालिका के संग, निर्ममता का व्यवहार किया ।

मात-पिता ने बड़े प्यार से, मुझको खूब पढ़ाया था।

 लोगों की सेवा कर जाऊं, ऐसा संकल्प दिलाया था।

 क्या मेरा अपराध था,  बस एक बार  बतला देते।

 गिद्धों की भांति मेरा, तन नोंच कर ना खाते

 धूमिल हुई सब आशाएं, मात-पिता के स्वप्न सारे ।

क्रूरता की सीमा लांघी, दानव भी तुमसे हार ।

राजनीति वह वैश्या है, जो अब भी उन्हें बचाती है।

 मेरी निश्छल आत्मा की, चीखें सुन ना पाती है।



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