उषा! गगन में लो विस्तार
उषा! गगन में लो विस्तार
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उषा गगन में लो विस्तार
हे उषा! गगन में लो विस्तार
अनुपम सौंदर्य मन में धार ।।
तम छाया जो गगन में अपार,
प्रबल बन करो तम निराकार ।
जीवन दायिनी सुख आधार ,
कर दो जग पर निज उपकार ।
है उषा! गगन में लो विस्तार ।।
मन अति रमणीय कलश समान,
ना हो हृदय में विद्वेष भाव ।
कलमष का न ढो सकते भार ,
भर दो परस्पर प्रेम अपार ।
है उषा! गगन में लो विस्तार ।।
अज्ञान तमस ना ले विस्तार ,
मन ज्ञान उमंग साहस भंडार ।
अपनी किरणों से भर संसार ,
चमके हर मन, घर,आंगन, द्वार।
हे उषा! गगन में लो विस्तार।।