वर्षा ऋतु
वर्षा ऋतु
अवनि व्याकुल ताप से,भेजे नभ संदेश ।
प्रेम रस बरसा जाओ ,हिय में बढ़ा कलेश ।।
सुन वेदना धरती की, अंबर छाए मेघ ।
मृग छोने से दौड़ रहे ,अंबर आंगन तेज।।
मेह रिमझिम बरस रहा, धरा करे रसपान।
प्रेम सुधा पा प्रिय का, बढ़ी धरा मुस्कान।।
हरी हरी चुनर धरी, रंग-बिरंगे पुहुप।
चहुं दिशि सोंधी गंध उड़ी, झूमें तितली मधुप।
