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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२४६; अक्रूर जी का हस्तिनापुर जाना

श्रीमद्भागवत-२४६; अक्रूर जी का हस्तिनापुर जाना

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परीक्षित, भगवान की आज्ञा मानकर

अक्रूर हस्तिनापुर चले गए

धृतराष्ट्र, भीष्म,विदुर , कुन्ती और

युधिष्ठिर आदि से वहाँ मिले ।


यह जानने के लिए कि धृतराष्ट्र

कैसा व्यवहार करें पांडवों से

अक्रूर जी कुछ महीनों तक

वहाँपर उनके पास ही रहे ।


सचपूछो तो धृतराष्ट्र में

साहस नही था विपरीत जाने का

अपने पुत्रों की इच्छा के

शकुनि आदि की सलाह वो मानते ।


कुन्ती और विदुर जी ने

बतलाया अक्रूर जी को ये

कि धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन आदि

पांडवों के गुणों से जलते रहते ।


शस्त्र कौशल, प्रभाव, बल आदि

गुण देखकर वो पांडवों के

और देखकर ये कि प्रजा भी

पांडवों से विशेष प्रेम करे ।


वो उतारू हो जाते हैं

पांडवों का अनिष्ट करने के लिए

कई बार दुर्योधन ने

विषदान आदि अत्याचार भी किए ।


आगे भी वे क्या करना चाहते हैं

सब बताया उन्होंने अक्रूर को

अक्रूर जी कुन्ती के घर आए जब

भाई के पास में जा बैठीं वो ।


नेत्रों में आंसू भरकर वे

पूछें कि मायके में सब हैं कैसे

पूछें कि कृष्ण बलराम क्या

फूफेरे भाइयों को याद हैं करते ।


कहें कि शत्रुओं के बीच में घिरकर

शोकाकुल हो रही हूँ मैं तो

क्या कृष्ण कभी सांत्वना देंगे

यहाँ आकर कभी वो हमको ।


भगवान कृष्ण को अपने सामने

समझकर कुन्ती ये कहने लगी

सचिदनंद्स्वरूप श्री कृष्ण

बच्चों के साथ मैं दुःख भोग रही ।


जीवनदाता सारे विश्व के

शरण में आयी हूँ तुम्हारी

परम मोक्ष देने वाले तुम

रक्षा करो श्री कृष्ण हमारी ।


श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

तुम्हारी परदादी कुन्ती जब

स्मरण कर रहीं मायके और कृष्ण का

बहुत दुखी हो रहीं थी वो तब ।


फफक फ़फ़ककर रोने लगीं वो

अक्रूर और विदुर दोनों ने

समान देखते जो दुःख और सुख को

कुन्ती से उन्होंने कहा ये ।


तुम्हारे पुत्र पैदा हुए हैं

अधर्म का नाश करने के लिए

धर्म, वायु आदि जन्मदाता इनके

याद दिलाया कुन्ती को ये ।


समझाकर उसे सांत्वना दें दोनो

अक्रूर जी धृतराष्ट्र के पास गए

कृष्ण बलराम का संदेश सुनाया

कौरवों से भरी सभा में ।


अक्रूर कहें, महाराज धृतराष्ट्र

कुरूवंश की उज्जवल कीर्ति को

बढ़ाइए और भी आप और

धर्म से पृथ्वी का पालन करो ।


भद्रव्यवहार से प्रजा को प्रसन्न रखिए

स्वजनों के साथ समान बर्ताव करें

लोक में यश, परलोक में सदगति

प्राप्त होगी ऐसा करने से ।


इसके विपरीत आचरण करें यदि तो

निन्दा होगी इस लोक में

नरक में भी जाना पड़ेगा

इसके फल से मरने के बाद में ।


अपने पुत्रों और पांडवों के साथ में 

बर्ताव कीजिए समानता का

जीव अकेला ही पैदा होता

और अकेला ही मर जाता ।


करनी धरनी का, पाप पुण्य का

भुगतना फल अकेले ही सबको

सभी छोड़कर चले जाते हैं

अपना समझें जिन स्त्री पुत्रों को ।


जिनके लिए जीव अधर्म करे

वो तो उसे छोड़ ही देंगे

कभी संतोष का अनुभव ना होगा

पापों से जाएगा घोर नरक में ।


चार दिनों की चाँदनी ये दुनिया

अपने प्रयत्न से रोकिए चित को

ममतावश पक्षपात ना करो

निष्पक्ष रहिए समत्व में स्थित हो ।


राजा धृतराष्ट्र कहें, अक्रूर जी

मेरे कल्याण की बात कर रहे

प्रिय अक्रूर जी मेरा मन तो

तृप्त ना हो रहा इन बातों से ।


फिर भी मेरे चंचल चित में

ना ठहर रही प्रिय शिक्षा आपकी

क्योंकि अत्यंत विषम हो गया ये

पुत्रों की ममता के कारण ही ।


अक्रूर जी सुना है भगवान

पृथ्वी का भार उतारने के लिए

यदुवंश में अवतीर्ण हुए

उनके विधान को कौन टाल सके ।


जैसी इच्छा उनकी, वही होगा

नमस्कार करता मैं प्रभु को 

धृतराष्ट्र का अभिप्राय जानकर

अक्रूर जी लौट आए मथुरा को ।


धृतराष्ट्र का व्यवहार, बर्ताव जो

पांडवों के प्रति रखते थे वो

उन्होंने जैसे वहाँ देखा था

सुना दिया कृष्ण बलराम को ।



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