श्रीमद्भागवत-२५८;; भगवान की सन्तति का वर्णन तथा अनिरुद्ध के विवाह में रुक्मी का मारा जाना
श्रीमद्भागवत-२५८;; भगवान की सन्तति का वर्णन तथा अनिरुद्ध के विवाह में रुक्मी का मारा जाना
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
श्री कृष्ण की प्रत्येक पत्नी से
दस दस पुत्र हुए थे
बल, सौंदर्य में उनके समान वे ।
राजकुमारियाँ देखतीं थीं कि
श्री कृष्ण उनके महल से
कभी भी बाहर नही जाते
हमारे पास सदा बने रहें ।
इससे सब की सब यही समझतीं
सबसे प्यारी मैं ही हूँ कृष्ण को
अपने प्रियतम भगवान कृष्ण की
महिमा नहीं समझती थीं वो ।
वे सुंदरियाँ भगवान कृष्ण में
स्वयं ही मोहित रहती थीं
हाव भाव से कृष्ण की इंद्रियों में
चंचलता उत्पन्न ना कर सकीं ।
नित्य निरन्तर उनके प्रेम में
आनन्द की अभिवृद्धि हो रही
भगवान की सेवा करतीं वो
प्रेम भरी मुस्कान से अपनी ।
आठ पटरानियाँ भी भगवान की
सभी के दस दस पुत्र हुए
रुक्मिणी के प्रद्युमण आदि
भानु आदि सत्यभामा के ।
जाम्बवती को साम्ब आदि हुए
सबके सब प्यारे श्री कृष्ण को
और भी जो रानियाँ उनकी
दस दस पुत्र सभी को ।
रुक्मिणी नंदन प्रद्युमण का
विवाह हुआ मायावती रति से
इसके अतिरिक्त उनका विवाह हुआ
रुक्मी की पुत्री रुक्मवती से ।
परम बलशाली अनिरुद्ध का जन्म
हुआ था उसी के गर्भ से
सोलह हज़ार से अधिक कृष्ण की पत्नियाँ
पुत्र, पोत्र तो करोड़ों में थे ।
राजा परीक्षित ने पूछा, मुनिश्वर
रुक्मी तो शत्रु था कृष्ण का
फिर उसने अपनी पुत्री का
विवाह प्रद्युमण से क्यों किया ।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
प्रद्युमण जी मूर्तिमान कामदेव थे
सौंदर्य और गुणों को देखकर उनके
रुक्मवती ने वरण किया उन्हें ।
स्वयंवर में इकट्ठे हुए नरपतियों को
अकेले ही जीत लिया युद्ध में
और रुक्म वती को हर लिया
कृष्ण पुत्र प्रद्युमण जी ने ।
यद्यपि रुक्मी का वैर था कृष्ण से
फिर भी उसने अपनी बहन को
प्रसन्न करने के लिए ही
कन्या ब्याह दी प्रद्युमण जी को ।
परीक्षित इन पुत्रों के अतिरिक्त
एक परम सुंदरी कन्या रुक्मिणी की
चारुमती नाम था उसका
कृतवर्मा के पुत्र बलि से ब्याही गयीं ।
रुक्मी ने अपनी पोत्री रोचना का
विवाह अनिरुद्ध के साथ कर दिया
रुक्मिणी के पोत्र अनिरुद्ध जी
भोजकट नगर में ये हुआ ।
कृष्ण, बलराम सब वहाँ पधारे और
जब विवाह सम्पन्न हो गया
कलिंगनरेश आदि घमंडी राजाओं ने
रुक्मी से तब ये कहा था ।
‘ तुम बलराम जी को पासों के खेल में
जीत लो क्योंकि बलराम को
पासे डालने तो आते नही पर
खेलने का बड़ा व्यसन है उनको ।
बहकावे में उन लोगों के आकर
बलराम जी को बुलाया रुक्मी ने
उनके साथ चोसर खेलते
उनसे कई दांव जीत लिए ।
रुक्मी की जीत होने पर
कलिंगनरेश हँसी उड़ाएँ बलराम की
बलराम जी कुछ चिढ़ गए थे
उसकी हंसी उन्हें सहन ना हुई ।
दांव लगाया एक लाख मुहरों का
तब इसके बाद रुक्मी ने
बलराम जी ने जीत लिया उसे
परंतु रुक्मी कहने लगा ये ।
कि ये दांव मैंने जीता है
तब बलराम क्रोध से तिलमिला उठे
नेत्र उनके लाल हो गए
करोड़ मुहरें लगा दीं दांव में ।
ध्रुतनियमों के अनुसार इस बार भी
जीत हुई बलराम जी की ही
परन्तु रुक्मी ने छल करके कहा
इस बार भी जीत हुई मेरी ।
उस समय आकाशवाणी हुई ये
‘ धर्मपूर्वक बलराम की जीत ये
सरासर झूठ कहना रुक्मी का
कि दांव उसने जीता ये ‘ ।
रुक्मी के सिर पर मौत सवार थी
राजाओं ने भी उभाड रखा उसे
आकाशवाणी पर ध्यान ना देकर
लगा बलराम की हंसी उड़ाने ।
कहे ‘ बलराम जी, आप लोग तो
वन वन भटकने वाले ही ठहरे
पासे तो खेलें राजा लोग ही
पासे खेलना आप क्या जानें ।
क्रोध से आग बबूला होकर
एक मुगदर उठाया बलराम ने
रुक्मी को मार डाला था
कलिंग नरेश के दांत तोड़ दिए ।
भगवान कृष्ण ने यह सोचकर
कि बलराम जी का समर्थन करने से
रुक्मिणी जी को अप्रसन्नता होगी
और इस वध को बुरा बतलाने से ।
बलराम जी रुष्ट होंगे इसलिए
रुक्मी की मृत्यु पर उन्होंने
भला बुरा कुछ भी ना कहा
रोचना, अनिरुद्ध को द्वारका ले गए ।