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Ajay Singla

Classics

5.0  

Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२५८;; भगवान की सन्तति का वर्णन तथा अनिरुद्ध के विवाह में रुक्मी का मारा जाना

श्रीमद्भागवत-२५८;; भगवान की सन्तति का वर्णन तथा अनिरुद्ध के विवाह में रुक्मी का मारा जाना

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

श्री कृष्ण की प्रत्येक पत्नी से

दस दस पुत्र हुए थे

बल, सौंदर्य में उनके समान वे ।


राजकुमारियाँ देखतीं थीं कि

श्री कृष्ण उनके महल से

कभी भी बाहर नही जाते

हमारे पास सदा बने रहें ।


इससे सब की सब यही समझतीं

सबसे प्यारी मैं ही हूँ कृष्ण को

अपने प्रियतम भगवान कृष्ण की

महिमा नहीं समझती थीं वो ।


वे सुंदरियाँ भगवान कृष्ण में

स्वयं ही मोहित रहती थीं

हाव भाव से कृष्ण की इंद्रियों में

चंचलता उत्पन्न ना कर सकीं ।


नित्य निरन्तर उनके प्रेम में

आनन्द की अभिवृद्धि हो रही

भगवान की सेवा करतीं वो

प्रेम भरी मुस्कान से अपनी ।


आठ पटरानियाँ भी भगवान की

सभी के दस दस पुत्र हुए

रुक्मिणी के प्रद्युमण आदि

भानु आदि सत्यभामा के ।


जाम्बवती को साम्ब आदि हुए

सबके सब प्यारे श्री कृष्ण को

और भी जो रानियाँ उनकी

दस दस पुत्र सभी को ।


रुक्मिणी नंदन प्रद्युमण का

विवाह हुआ मायावती रति से

इसके अतिरिक्त उनका विवाह हुआ 

रुक्मी की पुत्री रुक्मवती से ।


परम बलशाली अनिरुद्ध का जन्म

हुआ था उसी के गर्भ से

सोलह हज़ार से अधिक कृष्ण की पत्नियाँ

पुत्र, पोत्र तो करोड़ों में थे ।


राजा परीक्षित ने पूछा, मुनिश्वर

रुक्मी तो शत्रु था कृष्ण का

फिर उसने अपनी पुत्री का

विवाह प्रद्युमण से क्यों किया ।


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

प्रद्युमण जी मूर्तिमान कामदेव थे

सौंदर्य और गुणों को देखकर उनके

रुक्मवती ने वरण किया उन्हें ।


स्वयंवर में इकट्ठे हुए नरपतियों को

अकेले ही जीत लिया युद्ध में

और रुक्म वती को हर लिया

कृष्ण पुत्र प्रद्युमण जी ने ।


यद्यपि रुक्मी का वैर था कृष्ण से

फिर भी उसने अपनी बहन को

प्रसन्न करने के लिए ही

कन्या ब्याह दी प्रद्युमण जी को ।


परीक्षित इन पुत्रों के अतिरिक्त

एक परम सुंदरी कन्या रुक्मिणी की

चारुमती नाम था उसका

कृतवर्मा के पुत्र बलि से ब्याही गयीं ।


रुक्मी ने अपनी पोत्री रोचना का

विवाह अनिरुद्ध के साथ कर दिया

रुक्मिणी के पोत्र अनिरुद्ध जी

भोजकट नगर में ये हुआ ।


कृष्ण, बलराम सब वहाँ पधारे और

जब विवाह सम्पन्न हो गया

कलिंगनरेश आदि घमंडी राजाओं ने

रुक्मी से तब ये कहा था ।


‘ तुम बलराम जी को पासों के खेल में

जीत लो क्योंकि बलराम को

पासे डालने तो आते नही पर

खेलने का बड़ा व्यसन है उनको ।


बहकावे में उन लोगों के आकर

बलराम जी को बुलाया रुक्मी ने

उनके साथ चोसर खेलते

उनसे कई दांव जीत लिए ।


रुक्मी की जीत होने पर

कलिंगनरेश हँसी उड़ाएँ बलराम की

बलराम जी कुछ चिढ़ गए थे

उसकी हंसी उन्हें सहन ना हुई ।


दांव लगाया एक लाख मुहरों का

तब इसके बाद रुक्मी ने

बलराम जी ने जीत लिया उसे

परंतु रुक्मी कहने लगा ये ।


कि ये दांव मैंने जीता है

तब बलराम क्रोध से तिलमिला उठे

नेत्र उनके लाल हो गए

करोड़ मुहरें लगा दीं दांव में ।


ध्रुतनियमों के अनुसार इस बार भी

जीत हुई बलराम जी की ही

परन्तु रुक्मी ने छल करके कहा

इस बार भी जीत हुई मेरी ।


उस समय आकाशवाणी हुई ये

‘ धर्मपूर्वक बलराम की जीत ये

सरासर झूठ कहना रुक्मी का

कि दांव उसने जीता ये ‘ ।


रुक्मी के सिर पर मौत सवार थी

राजाओं ने भी उभाड रखा उसे

आकाशवाणी पर ध्यान ना देकर

लगा बलराम की हंसी उड़ाने ।


कहे ‘ बलराम जी, आप लोग तो

वन वन भटकने वाले ही ठहरे

पासे तो खेलें राजा लोग ही

पासे खेलना आप क्या जानें ।


क्रोध से आग बबूला होकर

एक मुगदर उठाया बलराम ने

रुक्मी को मार डाला था

कलिंग नरेश के दांत तोड़ दिए ।


भगवान कृष्ण ने यह सोचकर

कि बलराम जी का समर्थन करने से

रुक्मिणी जी को अप्रसन्नता होगी

और इस वध को बुरा बतलाने से ।


बलराम जी रुष्ट होंगे इसलिए

रुक्मी की मृत्यु पर उन्होंने

भला बुरा कुछ भी ना कहा

रोचना, अनिरुद्ध को द्वारका ले गए ।


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