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Ajay Singla

Inspirational

4  

Ajay Singla

Inspirational

मिट्टी

मिट्टी

2 mins
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सिद्ध पुरुष एक नगर में रहते 

वानप्रस्थ अपना लिया उन्होंने 

जब वन को वो जा रहे तो 

पत्नी साथ में जाने को कहे ।


ले लिया पत्नी को साथ में 

कुटिया में दोनों रहने लग गए 

भिक्षा माँग कर खाते थे वो 

दिन भर वो हरि का भजन करें ।


संत के साथ में रहते रहते 

सिद्ध हो गयी थोड़ी पत्नी भी 

एक दिन भिक्षा लेकर जब आ रहे 

रास्ते में संध्या हो गयी ।


पति आगे था, उसने देखा 

एक सैनिक जा रहा घोड़े पर 

गति तेज थी घोड़े की और तब 

एक पोटली गिर गयी वहाँ पर ।


पोटली के पास जब पहुँचे 

देखा उसमें मोहरें सोने की 

सोचें मोह ना मुझे कोई इनका 

पर लोभ ना हो पत्नी को मेरी ।


पत्नी थोड़ी दूरी पर उनकी 

सोने पर डालें मिट्टी हाथ से 

ढकने को उसको कोशिश करें वो 

नज़दीक आकर पत्नी कहे उनसे ।


“ मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे “

चुप रहे सुन उसकी बात को 

सोचें देखा ना पत्नी ने, चल दिए 

कुछ दूर जब पहुँच गए दोनों ।


अब सोचें पत्नी को बता दूँ

कहने लगे “ भाग्यवान ! सुनो

जिसको तुम मिट्टी समझ रही 

सोने की कई मोहरें थीं वो ।


लालच ना आए मन में तुम्हारे 

इसलिए ना बताया था तुम्हें “

पत्नी हँसीं, पति से बोली 

“ मैं तो समझी थी तुम सिद्ध हो गए ।


परंतु सोने में तुम सोना देखो

मुझे तो वो मिट्टी ही दिख रहा 

मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे 

इसीलिए था मैंने तुमसे कहा ।


ये भी मिट्टी, वो भी मिट्टी 

संसार की सारी वस्तुएँ मिट्टी 

मिट्टी से मिट्टी ढको तुम 

तुम भी मिट्टी, मैं भी मिट्टी “ ।


जो समझे ज्ञानी अपने को 

हो सकता हो अज्ञान से भरा 

और जिसको अज्ञानी वो समझे 

हो सकता हो भंडार ज्ञान का ।


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