मिट्टी
मिट्टी
सिद्ध पुरुष एक नगर में रहते
वानप्रस्थ अपना लिया उन्होंने
जब वन को वो जा रहे तो
पत्नी साथ में जाने को कहे ।
ले लिया पत्नी को साथ में
कुटिया में दोनों रहने लग गए
भिक्षा माँग कर खाते थे वो
दिन भर वो हरि का भजन करें ।
संत के साथ में रहते रहते
सिद्ध हो गयी थोड़ी पत्नी भी
एक दिन भिक्षा लेकर जब आ रहे
रास्ते में संध्या हो गयी ।
पति आगे था, उसने देखा
एक सैनिक जा रहा घोड़े पर
गति तेज थी घोड़े की और तब
एक पोटली गिर गयी वहाँ पर ।
पोटली के पास जब पहुँचे
देखा उसमें मोहरें सोने की
सोचें मोह ना मुझे कोई इनका
पर लोभ ना हो पत्नी को मेरी ।
पत्नी थोड़ी दूरी पर उनकी
सोने पर डालें मिट्टी हाथ से
ढकने को उसको कोशिश करें वो
नज़दीक आकर पत्नी कहे उनसे ।
“ मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे “
चुप रहे सुन उसकी बात को
सोचें देखा ना पत्नी ने, चल दिए
कुछ दूर जब पहुँच गए दोनों ।
अब सोचें पत्नी को बता दूँ
कहने लगे “ भाग्यवान ! सुनो
जिसको तुम मिट्टी समझ रही
सोने की कई मोहरें थीं वो ।
लालच ना आए मन में तुम्हारे
इसलिए ना बताया था तुम्हें “
पत्नी हँसीं, पति से बोली
“ मैं तो समझी थी तुम सिद्ध हो गए ।
परंतु सोने में तुम सोना देखो
मुझे तो वो मिट्टी ही दिख रहा
मिट्टी पर मिट्टी क्यों डाल रहे
इसीलिए था मैंने तुमसे कहा ।
ये भी मिट्टी, वो भी मिट्टी
संसार की सारी वस्तुएँ मिट्टी
मिट्टी से मिट्टी ढको तुम
तुम भी मिट्टी, मैं भी मिट्टी “ ।
जो समझे ज्ञानी अपने को
हो सकता हो अज्ञान से भरा
और जिसको अज्ञानी वो समझे
हो सकता हो भंडार ज्ञान का ।