मानव की सेवा धर्म बने लगा सकूँ दीनन को गले, द्वार से खाली जाए न कोई दे प्यार का अमिट भंडार मुझे। मानव की सेवा धर्म बने लगा सकूँ दीनन को गले, द्वार से खाली जाए न कोई दे प्यार ...
औरों के अज्ञान की उड़ाते रहो ठिठोली उपहास भी करो पर मीठी हो सदा बोली। औरों के अज्ञान की उड़ाते रहो ठिठोली उपहास भी करो पर मीठी हो सदा बोली।
हे माँ सरस्वती तेरी वंदना करें वंदना करे तेरी अर्चना करें। हे माँ सरस्वती तेरी वंदना करें वंदना करे तेरी अर्चना करें।
प्रकृति से मिलता है तुझ को कितना ज्ञान, फिर भी तू क्यों रहा अज्ञान ? प्रकृति से मिलता है तुझ को कितना ज्ञान, फिर भी तू क्यों रहा अज्ञान ?
चरित्र, ज्ञान, आचरण, निष्ठा प्राप्त होती,शिक्षा से। जिंदगी, गतिशील बनती पढने और आगे बढने से... चरित्र, ज्ञान, आचरण, निष्ठा प्राप्त होती,शिक्षा से। जिंदगी, गतिशील बनती ...