सूर्य और गुफा
सूर्य और गुफा
सूर्य, गुफा एक दिन मिले कहीं
अपनी अपनी कहानी सुना रहे
घुप्प अंधेरा ये होता है क्या
सूर्य पूछ रहे गुफा से ।
गुफा को भी समझ ना आया
प्रकाश, उजाला क्या होता ये
दोनों ने मिलकर तय किया कि
चलो हम अपनी जगह बदल लें ।
गुफा सूर्य के पास जब पहुँची
बोली, जो देख रही ना सोचा
कितना सुंदर, कितना साफ़ है
दर्शन इस स्पष्ट ज्योति का ।
गुफा तब सूर्य से कहे कि
अब आओ तुम मेरे घर में
सूर्य जब पहुँचा वहाँ पर
कहे मुझे कुछ अलग ना दिखे ।
असल में सूर्य जब नीचे आया
साथ ले आया प्रकाश वो अपना
रोशनी से पूरा गया भर
कोना कोना उस गुफा का ।
कहते हैं सिद्ध पुरुष जो होते
स्वर्ग अपना लेकर चलें साथ में
इसलिए खुश रहें वो सदा
चाहे अंधेरे में भी वो रहें ।
अंधकार भरा हो अंदर जो
डर, आशंका मन में हो भरी
बन जाते हम गुफा समान हैं
कई बार ना जानते हुए भी ।
नरक समान तुम हो जाते हो
धन, सम्पत्ति चाहे हो जितनी
अंदर सब ख़ाली ख़ाली सा
निरर्थक ज़िंदगी मानो अपनी ।
और जो सूर्य समान तुम
निरंतर चमको कर्मों से अपने
अंधकार गुफा का मिटा दो
सुख ढूँढ लेते हो दुःख में ।
आने वाला नव वर्ष है
अपना प्रकाश अपने साथ ले
सूर्य समान इसमें प्रवेश करो
समृद्ध हो ये तुम्हारे प्रकाश से ।