श्रीमद्भागवत-२८१ःभगवान श्री कृष्ण, बलराम से गोप गोपियों की भेंट
श्रीमद्भागवत-२८१ःभगवान श्री कृष्ण, बलराम से गोप गोपियों की भेंट
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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
कृष्ण, बलराम जब द्वारका में रह रहे
एक बार सर्वग्रास सूर्य ग्रहण लगा
जैसा कि प्रलय के समय लगे ।
अपने कल्याण के उद्देश्य से
पुण्य आदि करने के लिए
समंतपंचक तीर्थ कुरुक्षेत्र में
सब लोग इकट्ठे हुए थे ।
समंतपंचक क्षेत्र वही क्षेत्र है
जहां पर श्री परशुराम ने
पृथ्वी को क्षत्रियहीन कर राजाओं के
खून से कुण्ड बना दिए थे ।
लोकमर्यादा की रक्षा के लिए
वहीं पर यज्ञ किया था उन्होंने
लोग आए सभी जगह से वहाँ
यदुवंशी भी बहुत से वहाँ आए थे ।
ग्रहण के उपलक्ष में उन्होंने
स्नान किया वहाँ, उपवास भी किया
कैकय, कुरु, अंधक, सृजन आदि
देशों के नरपति भी आए वहाँ ।
एक दूसरे से मिलकर और
वार्तालाप से आनंद हुआ सबको
स्त्री पुरुषों की आँखें भर आयीं
वहाँ देखकर एक दूसरे को ।
कुशल मंगल पूछ कर फिर
कृष्ण लीलाएँ कहने सुनने लगे
सारा दुःख भूल गयी कुन्ती
वासुदेव और कृष्ण का दर्शन करके ।
कुन्ती ने वासुदेव से कहा
' भैया, मैं तो अभागी सचमुच ही
आप ने भी विपत्ति के समय
सुध ना ली मेरी कुछ भी ।
विधाता जिसके बाएँ हो जाता
स्वजन, सम्बन्धी भूल जाते उसे '
कुन्ती कहे वासुदेव जी से कि
आप लोगों का कोई दोष नहीं इसमें ।
वासुदेव कहें ' कुन्ती बहन
मत उलाहना ये दो हमें
हमसे विलग ना मानो तुम
खिलोने सभी मनुष्य दैव के ।
कंस के सताए हुए सब
इधर उधर भागे हुए थे
अभी कुछ ही दिन हुए हैं
ठीक हुआ सब प्रभु कृपा से ।
शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
नरपति आए हुए वहाँ बहुत से
कृष्ण के दर्शन करकर वो
परमानन्द का अनुभव कर रहे ।
श्री कृष्ण और बलराम से
भलीभाँति सम्मान प्राप्त करके
बड़े आनंद से श्री कृष्ण और
यदुवंशियों की प्रशंसा करने लगे ।
अग्रसेन जी से कहा उन्होंने
' धन्य है जीवन आप लोगों का
निरन्तर देखते रहते आप उन्हें
योगियों को भी दूर्लभ दर्शन जिनका ।
कृष्ण की कीर्ति का गान किया है
वेदों ने बड़े आदर से
चरणधोवन गंगाजल उनका
शास्त्र निकले उनकी वाणी से ।
अत्यन्त पवित्र कर रही है
उनकी कीर्ति ही इस जगत को
उनके चरणकमलों के स्पर्श से
सौभाग्य फिर से मिल गया पृथ्वी को ।
हमारी समस्त अभिलाषाएँ, मनोरथों
को
पूर्ण करने लगी पृथ्वी फिर से
सर्वव्यापक भगवान निवास करें
घर में ही आप लोगों के ' ।
नंदादि गोप भी आए हुए
गोपियाँ भी वहाँ आयीं थीं
उत्कंठित हो कृष्ण दर्शन को
जब उनको मालूम हुआ कि ।
कृष्ण आदि आए हुए वहाँ
तब उनको देखने वहाँ सब आए
मन आनन्द से भर गया नंद का
देर तक आलिंगन करते रहे ।
वासुदेव ने नंद को गले से लगाया
पुरानी बातें सब याद आ गयीं
माता पिता के चरणों में प्रणाम किया
कृष्ण और बलराम दोनों ने ही ।
रोहिणी और देवकी ने भी
यशोदा जी को गले लगाया
कहने लगीं ' नंदरानी जी
उपकार भूल ना सकते हम आपका ।
जैसे श्री कृष्ण और बलराम को
अपने पास रखा आपने
सच पूछो तो आप लोग ही
असल में माँ बाप हैं इनके ' ।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
सर्वस्व हैं कृष्ण तो गोपियों के लिए
अब तो बहुत दिनों के बाद ही
उनको दर्शन हुए श्री कृष्ण के ।
नेत्रों के रास्ते अपने प्रियतम को
हृदय में ले जाकर उन्होंने
गाढ़ आलिंगन किया कृष्ण का
उनमें ही तन्मय हो गयीं वे ।
जब श्री कृष्ण ने देखा कि
गोपियाँ उनमें तन्मय हो गयीं
उनके पास गए तब कृष्ण
कुशल क्षेम पूछी थी उनकी ।
हंसते हुए बोले वो उनको
' स्वजन सम्बन्धियों के काम से
तुम जैसे प्रेमियों को छोड़कर
चले आए हम बाहर व्रज से ।
शत्रुओं का विनाश करने में
उलझ गए हम फिर वहाँ
मेरी तरह तुम लोग सभी
क्या स्मरण करती हमारा ।
तुम लोगों के मन में कहीं
यह आशंका तो नही हो गयी
कि मैं बड़ा अकृतज्ञ हूँ
हमसे बुरा तो नहीं मानने लगीं ' ।
गोपियों के संयोग, वियोग के
निस्संदेह कारण कृष्ण ही
कहें कि मेरा प्रेम जो प्राप्त है तुम्हें
मुझे पाओगी इस प्रेम से ही ।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
श्री कृष्ण ने गोपियों को ऐसे
अध्यात्मज्ञान की शिक्षा दी तो
भगवान में एक हो गयीं वो ।
तब उन्होंने कहा ' हे कमलनाभ !
बड़े बड़े योगेश्वर अपने
हृदय कमल में वो आपके
चरणकमलों का चिंतन हैं करते ।
एकमात्र अवलम्बन हैं
ये चरणकमल जो आपके
संसार के कुएँ में गिरे वो
उससे निकालने के लिए ।
प्रभो ! आप कृपा कीजिए ऐसी
कि ये चरणकमल जो आपके
गृहस्थी का काम करते हुए भी
हमारे हृदय में विराजमान रहें ।