श्रीमद्भागवत - १५६;समुन्द्र से अमृत का प्रकट होना और भगवान् का मोहिनी अवतार
श्रीमद्भागवत - १५६;समुन्द्र से अमृत का प्रकट होना और भगवान् का मोहिनी अवतार
श्री शुकदेव जी कहते हैं कि इस प्रकार जब
विष पी लिया शंकर जी ने
प्रसन्न हुए असुर और देवता
बड़े उत्साह से समुन्द्र मथने लगे!
अग्निहोत्र की सामग्री उत्पन्न करने वाली
कामधेनु प्रकट हुई समुन्द्र से
ब्रह्मवादी ऋषिओं ने उसे ग्रहण किया
दूध आदि प्राप्त करने के लिए!
इसके बाद एक घोडा निकला
उच्चैश्रवा नाम था जिसका
श्वेत वर्ण जैसे चन्द्रमाँ
बलि की उसे लेने की इच्छा!
इंद्र ने उसे नहीं चाहा क्योंकि
सिखा रखा था पहले ही भगवान् ने
तदनन्तर हाथी ऐरावत निकला
जिसके बड़े बड़े चार दांत थे!
तत्पश्चात कौस्तुभमणि निकली और
अजितभगवान ने उसे ले लिया
हे परीक्षित इसके बाद फिर
स्वर्ग में सुशोभित कलपवृक्ष निकला!
याचक जो इच्छा करें इस वृक्ष से
उनकी इच्छा पूरी करता ये
तत्पश्चात अप्सराएं प्रकट हुईं
सुसज्जित वो सुंदर वस्त्रों से!
अपनी मनोहर चाल से और
विलासभरी चितवन से अपनी
मनोरंजन करतीं देवों का
देवताओं को सुख पहुंचातीं!
इसके बाद शोभा की मूर्ती
प्रकट हुईं लक्ष्मी देवी जी
भगवन की नित्यशक्ति हैं वो
उनकी छटा से दिशाएं जगमगा उठीं!
उनके सौंदर्य ने अपनी और
खींच लिया सब का चित था
सभी चाहें ये हमें मिल जाये
देवता, असुर और मनुष्य जो वहां!
स्वयं इंद्र अपने हाथों से
उनके लिए आसान ले आये
श्रेष्ठ नदिओं ने मूर्तिमान हो
पवित्र जल भरा सोने के घड़ों में!
सभी योग्य औषधियां दी थीं
पृथ्वी ने अभिषेक के लिए
गोओं ने पंचगव्य और
बसंत ऋतु ने फूल फल दिए!
इन सामग्रियों से ऋषिओं ने उनका
विधिपूर्वक अभिषेक संपन्न किया
गंधर्वों ने संगीत की तान छेड़ दी
नाच गान करें नरतकियाँ!
बादल सदेह होकर बड़े जोश में
मृदंग, ढोल, नगाड़े बजाने लगे
सिंहांसन पर विराजमान हुईं
लक्ष्मी जी कमल लिए हाथ में!
जल से भरे कलशों से
स्नान कराया दिग्गजों ने उन्हें
और उस समय ब्राह्मणगण
वेदमंत्रों का पाठ कर रहे!
पीला रेशमी वस्त्र पहनने को
समुन्द्र ने दिया उनके लिए
वैजन्तीमाला जो मधुमय सुगंध दे
समर्पित की उनको वरुण ने!
विशवकर्मा ने भांति भांति के गहने
सरस्वती ने हार दिया मोतियों का
नागों ने दो कुण्डल समर्पित किये
ब्रह्मा जी ने उन्हें कमल दिया!
सर्वगुणसम्पन्न पुरुष के लिए
हाथों में कमल की माला लेकर
जब चलीं लक्ष्मी जी तो
अवर्णनीय शोभा थी उनके मुख पर!
लज्जा के साथ और मुस्कुराती हुईं
इधर उधर चलती थीं जब वे
मधुर झंकार निकलती थी तब
चलने से उनके पायजेब से!
अन्त में सोच विचार कर
चिर अभिष्ट भगवान् को ही अपने
वर के रूप में चुना था क्योंकि
सभी गुण उनमें निवास करें!
एक मात्र आश्रय भगवान ही
वास्तव में हैं लक्ष्मी जी के
इसलिए वरण किया उन्होंने उनका
कमलों की माला डाली गले में!
अधिष्ठाता समस्त सम्पतिओं की
जगजननी लक्ष्मी जी को फिर
सर्वदा निवास करने का स्थान दिया
भगवान् ने अपने वक्षस्थल पर!
विराजमान होकर वहां पर
लक्ष्मी जी ने अविवृद्धि की
तीनों लोक, लोकपालों और
अपनी प्यारी प्यारी प्रजा की!
ब्रह्मा, रूद्र, अंगिरा आदि वहां
पुष्प वर्षा करने लगे उनपर
और दोनों की आराधना करें वो
हाथ जोड़कर और स्तुति कर!
लक्ष्मी जी ने जब ऐसे
दैत्यों, देवताओं की उपेक्षा कर दी
तब वे सब लोग हो गए
उद्योग रहित, निर्लज्ज और लोभी!
वारुणी देवी प्रकट हुई थीं
इसके बाद समुन्द्र मंथन से
दैत्यों ने उसे ले लिए
भगवान जी की अनुमति से!
और समुन्द्र मंथन करने पर
एक अलौकिक पुरुष प्रकट हुआ
भुजाएं लम्बी और मोटी उसकीं
था उसमे अनुपम सौंदर्य!
हाथों में कंगन और कलश था
कलश में अमृत भरा हुआ
विष्णु भगवन के अंशांश अवतार वो
धन्वंतरि उनका नाम था!
यज्ञभोक्ता, आयुर्वेद के प्रवर्तक वे
दैत्यों की दृष्टि उनपर पड़ी जब
अमृत से भरे कलश को
छीन लिया उन्होंने उनसे तब!
देवता विशाद से भर गए
शरण में गए वो भगवान् की
भगवान ने कहा खेद मत करो
दीन दशा देखकर उनकी!
भगवान कहें माया से मैं अपनी
उनमें फूट डलवा देता हूँ
चिंता न करो तुम मैं अभी
तुम्हारा काम बना देता हूँ!
हे परीक्षित, अमृत के लिए वहां
झगड़ा खड़ा हो गया दैत्यों में
सभी कहें '' पीयूं मैं पहले ''
एक दुसरे से कलश छीन लें!
इधर भगवान् ने अत्यंत अद्भुत और
अवर्णनीय स्त्री का रूप धारण किया
सुंदर शरीर, नेत्र कमल से
ऐसा कि देखने योग्य था!
अंग, प्रत्यंग बड़े ही आकर्षक
सलज्ज मुस्कान, तिरछी भौहें उनकी
दैत्यों के चित में कामोद्दीपन करें
मोहिनी रूपधारी भगवन ही!