श्रीमद्भागवत - १७३;वैवस्वत मनु के पुत्र राजा सुद्युम्न की कथा
श्रीमद्भागवत - १७३;वैवस्वत मनु के पुत्र राजा सुद्युम्न की कथा
राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन
आपने कहा कि सत्यव्रत ही
इस कलप के वैवस्वत मनु हुए
पुत्र उनके थे इक्ष्वाकु आदि।
कृपाकर अब वर्णन कीजिये
हे ब्राह्मण, उनके वंश का
और वंश में होने वाले
अलग अलग चरित्रों का।
सूत जी कहें, शौनकादि ऋषिओ
राजा परीक्षित के प्रश्न पूछने पर
श्री शुकदेव जी ने उनसे कहा
संक्षिप्त में उन मनु का वंश वर्णन कर।
कहा परीक्षित, प्रलय के समय में
सिर्फ परम पूज्य परमात्मा थे
नाभि से उनके कमलकोष प्रकट हुआ
ब्रह्मा जी का आविर्भाव हुआ उसी से।
ब्रह्मा जी के मन से मरीचि आये थे
मरीचि के पुत्र कश्यप हुए
विवस्वान (सूर्य ) का जन्म हुआ
उनकी पत्नी अदिति से।
विवस्वान की पत्नी संज्ञा से
श्राद्धदेव मनु का जन्म हुआ
श्राद्धदेव की पत्नी श्रद्धा से
जन्म हुआ दस पुत्रों का।
इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट, धृष्ट
करूष, नरिष्यन्त, पृषध्र, नभग और कवि
ये सब उन पुत्रों के नाम थे
श्रद्धा के गर्भ से हुए ये सभी।
वैवस्वत मनु संतानहीन थे पहले
उस समय भगवान् वशिष्ठ ने
मित्रावरुण का यज्ञ कराया
संतान प्राप्ति के लिए उन्हें।
यज्ञ के आरम्भ में श्रद्धा ने
पास जाकर अपने होता के
प्रणामपूर्वक याचना की कि
कन्या ही प्राप्त हो मुझे।
तब अध्वर्यु की प्रेरणा से
श्रद्धा के कथन का स्मरण कर ब्राह्मण ने
वषट्कार का उच्चारण करते हुए
आहुति दी थी यज्ञ कुंड में।
होता ने ऐसे विपरीत कर्म किया
तब फलस्वरूप उस यज्ञ के
इला नाम की कन्या हुई
पुत्र के स्थान पर श्रद्धा के।
मन कुछ विशेष प्रसन्न न हुआ
उसे देखकर श्राद्धदेव मनु का
अपने गुरु वशिष्ठ जी से
तब उन्होंने ऐसा था कहा।
ब्राह्मण आप ब्रह्मवादी हैं
कैसे फिर विपरीत हो गया कर्म ये
वैदिक कर्म का ऐसा विपरीत फल
कभी नहीं था होना चाहिए।
परीक्षित, हमारे पितामह वशिष्ठ ने
जान लिया सुनकर बात ये
कि होता ने विपरीत संकल्प किया है
उन्होंने तब मनु से कहा ये।
राजन, तुम्हारे होता के ही
विपरीत संकल्प से ये हुआ
हमारा संकल्प पूरा न हुआ पर
तप से मैं तुम्हे श्रेष्ठ पुत्र दूंगा।
परीक्षित, परम यशश्वी वशिष्ठ ने
ऐसा निश्चय करके इला को ही
पुरुष बना देने के लिए
पुरुषोत्तम नारायण की स्तुति की।
सर्वशक्तिमान भगवान् हरि ने
संतुष्ट होकर मुँह माँगा वर दिया
जिसके प्रभाव से वह कन्या ही
पुत्र सुद्युम्न बन गया।
एक दिन शिकार खेलने
सवार हो सुद्युम्न घोड़े पर
मेरु पर्वत के एक वन में
चला गया मंत्रियों को लेकर।
उस वन में भगवान् शंकर जी
विहार करते हैं संग पार्वती के
प्रवेश करते ही देखा सुद्युम्न ने
कि वो तो एक स्त्री हो गए।
उनका घोडा भी घोड़ी हो गया
और साथ में जो अनुचर थे
वीरवर सुद्युम्न ने देखा
वो सब भी स्त्रीरूप हो गए।
एक दुसरे का मुँह देखने लगे
सबका चित उदास हो गया
राजा परीक्षित पूछें, हे भगवन
उस भूखंड में ऐसा क्या था।
विचित्र गुण ये कैसे आ गया
किसने बना दिया ऐसा उसे
हमें बड़ा कौतूहल हो रहा
कृपाकर प्रश्न का उत्तर दीजिये।
श्री शुकदेव जी कहें, परीक्षित
एक दिन शंकर का दर्शन करने
बड़े बड़े ऋषि मुनिगण
विचरण करते उस वन में गए।
वस्त्रहीन थीं अम्बिकादेवी उस समय
सहसा आया देख ऋषिओं को
तुरंत वस्त्र धारण कर लिए
लज्जा आ रही थी उनको।
ऋषिओं ने देखा कि गौरी शंकर
इस समय विहार कर रहे
वहां से लौट वो चले गए
नर नारायण के आश्रम में।
उसी समय भगवान् शंकर ने
अम्बिका को प्रसन्न करने के लिए
कहा, की मेरे बिना जो पुरुष
प्रवेश करेगा इस स्थान में।
प्रवेश करते ही वह पुरुष
उसी समय स्त्री हो जाये
हे परीक्षित, पुरुष प्रवेश न करें
तभी से उस स्थान में।
स्त्री हो गए थे सुद्युम्न अब
उनके अनुचर भी स्त्री बने हुए
एक वन से दुसरे वन में
वे सब लोग विचरने लगे।
शक्तिशाली बुद्ध ने देखा
उनके आश्रम के पास ही
सुंदर स्त्री एक विचर रही है
बहुत सी स्त्रियों से घिरी हुई।
यह मुझे प्राप्त हो जाये
उन्होंने ये इच्छा की थी
बुद्ध को पति बनाना चाहा
उस सुंदर स्त्री ने भी।
बुद्ध ने उसके गर्भ से
पुरुरवा नामक पुत्र उत्पन्न किया
मनु पुत्र राजा सुद्युम्न
स्त्री हो गए इस तरह।
सुनते हैं कि इस स्वरुप में अपने
वशिष्ठ जी का स्मरण किया उन्होंने
सुद्युम्न की दशा देख वशिष्ठ को
अत्यन्त पीड़ा हुई ह्रदय में।
उन्होंने सुद्युम्न को पुनः फिर
पुरुष बना देने के लिए
भगवान् शंकर की आराधना की
शंकर उनपर प्रसन्न हो गए।
उनकी अभिलाषा पूर्ण करने को
और सत्य रखते हुए अपनी वाणी भी
हे परीक्षित, शंकर ने वशिष्ठ से
मधुर वाणी में ये बात कही।
वशिष्ठ, तुम्हारा यजमान जो ये
एक महीने तक पुरुष रहे
एक महीने स्त्री रहे ये
ऐसे ही पृथ्वी का शासन करे।
इस प्रकार राजा सुद्युम्न
पृथ्वी का शासन करने लगा
अभिनन्दन नहीं करती थी
परन्तु उनका, उनकी की प्रजा।
उत्कल, गय और विमल नाम के
तीन पुत्र हुए थे उनके
वृद्धावस्था में पुरूरवा को राज्य सौंप
सुद्युम्न वन को चले गए।