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Ajay Singla

Classics

5  

Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत - २०७; यमलार्जुन उद्धार

श्रीमद्भागवत - २०७; यमलार्जुन उद्धार

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राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन 

कृपाकर ये बतलाये कि 

नलकूबर और मणिग्रीव को 

नारद ने शाप दिया किस कारण से।


ऐसा क्या निन्दनीय कार्य किया 

जिसके कारण देवर्षि नारद को 

उन दोनों पर क्रोध आ गया 

और शाप दे दिया उनको।


श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित 

नलकूबर और मणिग्रीव, ये दोनों 

एक तो धनाध्यक्ष कुबेर के लाडले 

दुसरे रुद्रभगवान के अनुचर वो।


इससे उनका घमंड बढ़ गया 

एक दिन मन्दाकिनी के तट पर 

कैलाश के रमणीय उपवन में 

मद्दोन्मत हो रहे मदिरा पीकर।


नशे के कारण आँखें घूम रही 

बहुत सी स्त्रियां भी साथ में 

विहार कर रहे उन स्त्रियों के संग 

पुष्पों से लदे वन में वे।


जल में घुस कर क्रीड़ा करने लगे 

सौभाग्य से नारद आ निकले वहां 

समझ गए वो के मतवाले हो रहे ये 

नशे में जब उन यक्षों को देखा।


वस्त्रहीन अप्सराएं लज्जा गयीं 

देवर्षि नारद को देखकर 

झटपट वस्त्र पहन लिए थे 

उनको था ऋषि से शाप का डर।


परन्तु कपडे न पहने यक्षों ने 

और जब नारद जी ने देखा ये 

कि देवताओं के पुत्र होकर भी 

श्री मद में अंधे हो रहे।


मदिरारपान से उन्मत्त हो रहे वे 

तब उनपर अनुग्रह करने को 

नारद जी ने शाप दे दिया 

और ये कहा था उनको।


नारद जी कहें, ये मद ही 

नष्ट करने वाला बुद्धि को 

मनुष्य इन्द्रियों के वश में रहे 

ऐश्वर्यमद में अँधा होकर वो।


अजर अमर समझ ले पुरुष जो 

अपने नाशवान शरीर को ही 

और वे हत्या करते हैं 

अपने जैसे शरीर वाले पशुओं की।


अन्त में जो नष्ट हो जाये 

उसी शरीर के लिए प्राणियों से 

द्रोह करने से मनुष्य ये  

कौन सा स्वार्थ है वो समझे।


ऐसा करने से तो उसे 

नर्क की ही होती प्राप्ति 

तुम ही बतलाओ अब मुझको 

ये शरीर किसकी संपत्ति ?


अन्न देकर पालने वाले की या 

गर्भाधान करने वाले पिता की 

पेट में रखने वाली माता अथवा 

माता को पैदा करने वाले नाना की।


बलपूर्वक जो काम करा लेता उसका 

या दाम देकर खरीद लेने वाले का 

चिता की धधकती आग का अथवा 

खाने के आस में बैठे कुत्ते, सयारों का।


यह शरीर एक साधारण सी वास्तु 

पैदा होता है प्रकृति से 

और उसी में समा जाये 

और तब ऐसी स्थिति में।


मूर्ख पशुओं के सिवा कौन जो 

अपनी आत्मा मानकर इसको 

दूसरों को कष्ट पहुंचाए 

और उनके प्राण ले ले वो।


मद में अंधे हो रहे दुष्ट जो 

आँखों में ज्योति डालने के लिए उनके 

दरिद्रता ही सबसे बड़ा अंजन 

क्योंकि दरिद्र देख सकता ये।


दूसरे प्राणी मेरे ही जैसे 

जो कांटा गड जाता किसी के शरीर में 

वो नहीं चाहता किसी भी प्राणी को 

कांटा लगने की पीड़ा सहनी पड़े।


परन्तु जिसे कांटा लगा ही नहीं कभी 

उसकी पीड़ा अनुभव न कर सके 

घमंड नहीं होता और हेकड़ी 

भी नहीं होती दरिद्र में।


सब तरह के मदों में बचा रहता 

उसको जो कष्ट उठाना पड़ा 

वो भी उस दरिद्र के लिए 

बहुत बड़ी है एक तपस्या।


प्रतिदिन भोजन के लिए अन्न जुटाए 

भूख से शरीर दुर्बल हो जाएं 

सूख जातीं हैं सब इंद्रियां 

इन्द्रियन विषयों को न भोगना चाहें।


और वह अपने भोगों के लिए 

सताता नहीं दुसरे प्राणियों को 

पीड़ा समझता है वो उनकी भी 

उनकी हिंसा न करे वो।


यद्यपि साधु परुष समदर्शी होते 

फिर भी समागम उनसे 

दरिद्र के लिए सुलभ है क्योंकि 

भोग पहले ही छूटे हुए उनसे।


तीन दोष हैं धनी पुरुष के


धन, धन का अभिमान, तृष्णा धन की 


पहले दो दरिद्र में नहीं होते 


केवल तीसरा तृष्णा ही होती | 


इसलिए सत्पुरुषों के संग में


तृष्णा मिट जाने पर उसका 


धनियों की अपेक्षा शीघ्र कल्याण हो 


इसीसे सत्पुरुष करें धनियों की उपेक्षा | 


 

तब संतों के संग से उसकी 

लालसा, तृष्णा भी मिट जाती 

और उसका अन्तकरण जो 

सुध हो जाता शीघ्र ही।


ये दोनों यक्ष मतवाले और 

श्रीमद से अंधे हो रहे हैं 

मद क्षण में चूर कर दूंगा 

इन स्त्रिलंपट यक्षों का मैं।


कुबेर के पुत्र होने पर भी 

मदोन्मत्त हो अचेत हो रहे 

ये बिलकुल नंग धडंग हैं 

इस बात का भी पता नहीं इन्हें।


इस लिए अब दोनों यक्ष 

वृक्षयोनियों में जाने योग्य ये 

वृक्ष होने से भी मेरी कृपा से 

भगवान् में स्मृति बनी रहे।


मेरे अनुग्रह से देवताओं के 

बीत जाएं जब सौ वर्ष तो 

भगवान् कृष्ण का सानिध्य 

प्राप्त होगा इन लोगों को।


और फिर भगवान् कृष्ण के 

चरणों का प्रेम प्राप्त होगा इन्हें 

इनको मुक्ति मिल जाये तब 

चले जायेंगे अपने लोक में।



शुकदेव जी कहें, ऐसा कहकर 

नारद जी आश्रमपर चले गए 


वे दोनों अर्जुन वृक्ष होकर 


प्रसिद्द हुए यमलार्जुन नाम से | 




अपने परम भक्त नारद की 


बात सत्य करने के लिए 


ऊखल घसीटते हुए श्री कृष्ण 


पहुंचे जिधर यमलार्जुन वृक्ष थे | 




दोनों वृक्षों के बीच में घुस गए 


दूसरी और से निकल गए वे तो 


परन्तु ऊखल टेढ़ा हो गया था 


दोनों वृक्षों में अटक गया वो | 




दामोदर भगवान् कृष्ण के 


कमर में रस्सी बंधी हुई थी 


जब उन्होंने ऊखल को 


तनिक जोर से खींचा त्योंही | 




पेड़ों की भारी जड़ें उखड गयीं 


बड़े जोर से लड़खड़ाते हुए 


दोनों ही अर्जुन वृक्ष वे 


पृथ्वी पर थे गिर पड़े | 




उन दोनों वृक्षों में से 


दो पुरुष समान अग्नि के 


निकले और दिशाएं चमक उठीं 


उन के चमचमाते सौंदर्य से | 




भगवान् के चरणों में प्रणाम किया 


स्तुति करने लगे वे भगवान् की 


कहें आप योगेश्वर हैं और 


पुरषोतम भी स्वयं आप ही |  



समस्त जीवों के अभ्युदय के लिए 


सम्पूर्ण शक्तियों से अवतीर्ण हुए 


पूर्ण करें समस्त अभिलाषाओं को 


नमस्कार हम आपको करते | 




हम आपके दासानुदास हैं 


नारद जी के परम अनुग्रह से 


दुर्लभ दर्शन प्राप्त हुए हैं  


हम अपराधियों को आपके | 




इस प्रकार स्तुति करने पर 


नलकूबर और मणिग्रीव के 


रस्सी से बंधे बंधे ही 


हँसते हुए कहा श्री कृष्ण ने | 




मद में अंधे हो रहे थे तुम 


शाप देकर तुम्हे नारद ने 

ऐश्वर्य नष्ट करके तुम्हारा 


तुम्हारे ऊपर कृपा की उन्होंने | 




मेरे परायण हो तुम लोग अब 


जाओ अपने अपने घर को 


प्राप्ति तुमको हो गयी उसकी 


अत्यंत भक्तिभाव मेरा जो | 




श्री शुकदेव जी कहते, भगवान् ने 


इस प्रकार जब कहा दोनों से 


परिक्रमा कर प्रणाम किया कृष्ण को 


उत्तर दिशा की यात्रा की उन्होंने | 











 



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