पल दो पल की ज़िन्दगी
पल दो पल की ज़िन्दगी
कोरोना कोरोना कोरोना,
सुन सुनके पक गए मेरे कान।
अब बहुत हो गया रोना,
चलो मिलके करें जीवन का गान।
एक समय था निराला,
जब हम सब घुलमिलते थे बेझिझक।
हर ओर रहता था उजाला,
ना थी कोई पाबंधी, ना कोई शिकायत।
पर अब तो लगता है जैसा,
वो सब पिछले ज़माने की बातें है।
समय ने पलटा ऐसा,
जैसे वो दिन था, और ये रात है।
कभी कभी मैं सोचता हूं कि,
मनुष्य का ही विषैला सोच है।
मनुष्य ने कब सोचा भला कि,
प्रकृति ही सर्वोत्तम है!
इस बार प्रकृति ने दी है कड़ी चेतावनी,
अच्छे अच्छों कि उड़ चुकी है नींद।
पर कुछ लोगों को करना है अपनी मनमानी,
जैसे फूंक से उड़ाना है, पल दो पल की ज़िन्दगी !
