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lalita Pandey

Classics

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lalita Pandey

Classics

मेरा मजहब तुम्हारा धर्म

मेरा मजहब तुम्हारा धर्म

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किताबी दुनियां से बाहर निकल,

आज धर्मो को जाना है।

हमने इंसान को धर्मो से नहीं 

इंसानियत से पहचाना हैं।


हमने हमेशा उनके खुदा,

अपने ईश्वर को एक पाया हैं।

उनकी अज़ान में भी,

हमने ईश्वर को सिर को झुकाया हैं।


ईद और दीवाली में,

सबको संदेश पहुँचाया हैं।

कभी बाज़ी, कभी दीदी

बोल कर खूब चिढ़ाया हैं।


हमें शिक्षक ने कभी,

मजहबी व्यवहार नहीं सिखाया।

कभी तब्बसुम,कभी हिना,

कभी सलमा मैम ने भी हमें पढ़ाया है।


हमनें साथ-साथ हवन की वेदी में,

 पुष्प अर्पण कर परीक्षा दी है।

हमनें साथ-साथ हिन्दी से उर्दू,

उर्दू से हिन्दी में नाम लिखने की जद्दोजहद की हैं।


हमने तुमसे तुम्हारें नामों का मतलब

पूछा भी होग

ा, चिढ़ाया भी होगा।

हमने इतिहास में तुम्हारा कलमा, 

बड़े शौक से कई बार पढ़ा हैं।


चाहे तुमने हमारा गायत्री मंत्र, 

कभी सुना भी ना हो।

पर कभी मजहबी छींटकशी नहीं की होगी।


तुम्हारें रोज़ो में हमनें भी अवकाश मौज ली है।

तुम्हारे मेहंदी और बुरके के नये डिजाइन,

 हमें आज भी पसंद है

तो फिर,स्कूली शिक्षा का समाजिक शिक्षा में,

परिवर्तन कैसे हो गया।


तुम जहाँ हो वही से,एकता का प्रसार करना।

सच का साथ झूठ का वहिष्कार करना।

आने वाला भविष्य,हमारे पास है।

धर्म का अनुसरण करना,धर्मान्ध मत बनना।

कुछ विचलित लोग हर धर्म में संगठित हैं।


उनको शान्त करने का कार्य 

उस धर्म के बुद्धिजीवी वर्ग का हैं।

धर्म के साथ कर्म का भी वर्ग है।


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