मेरा वो रूप
मेरा वो रूप
मेरा वो रूप
न देख पाओगे तुम कभी
क्योंकि तुम्हें सिर्फ स्वयं की आदत लग गई है
और मेरे भीतर का रूप स्वयं मैं भी भूल रही हूँ
क्योंकि चल पड़ी हूँ संग तुम्हारे
बड़प्पन की राह में
जहाँ शायद मिले सब कुछ
पर न मिल सके मन की शान्ति
क्योंकि त्याग कर स्वयं का
रंग में तुम्हारे रंगने
मुझे छोड़ना पड़ा है
बालमन अपना
ख्वाहिश को कर दिया दफन
हृदय के कोर में कही
तुम जैसा बनने में
नहीं रही स्वयं में।