दशहरा
दशहरा
जला कर हर बार मुझे तुम
क्यों हर्षाते हो
अपने भीतर के रावण को
अपने ठहाको में छुपाते हो।
हरण किया सीता का मैनें
पाये हरि के दर्शन भी
तुम मानव हो कलयुग के
स्वंय हरि बन इतराते हो।
मन में पाप की गठरी रख
हर बार मेरा पुतला
जला के
रावण-रावण चिल्लाते हो।
पाओगे नयनसुख बस तुम
चाहो अगर आत्मसुख तो
मन के भीतर के रावण को
आओ मिलकर हराते है
इस बार दशहरा में
अपनी बुराइयों का
रावण जलाते है।