STORYMIRROR

lalita Pandey

Classics Inspirational

4  

lalita Pandey

Classics Inspirational

दशहरा

दशहरा

1 min
294


जला कर हर बार मुझे तुम

क्यों हर्षाते हो

अपने भीतर के रावण को 

अपने ठहाको में छुपाते हो।


हरण किया सीता का मैनें

पाये हरि के दर्शन भी

तुम मानव हो कलयुग के

स्वंय हरि बन इतराते हो।


मन में पाप की गठरी रख

हर बार मेरा पुतला 

जला के

रावण-रावण चिल्लाते हो।


पाओगे नयनसुख बस तुम

चाहो अगर आत्मसुख तो 

मन के भीतर के रावण को

आओ मिलकर हराते है 


इस बार दशहरा में

अपनी बुराइयों का 

रावण जलाते है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics