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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -१६० ; मोहिनीरूप को देखकर महादेव जी का मोहित होना

श्रीमद्भागवत -१६० ; मोहिनीरूप को देखकर महादेव जी का मोहित होना

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

भगवान् शंकर ने जब सुना ये

कि असुरों को मोहित करने को

धारण किया स्त्री रूप हरि ने।


तब सती देवी को साथ ले

बैल पर सवार होकर वो

भगवान् मधुसूदन के निवास गए

साथ लेकर वो भूतगणों को।


भगवान् श्री हरि ने प्रेम से

सत्कार किया भगवान् शंकर का

शंकर स्तुती करें हरि की

महादेव जी ने था तब कहा।


आप ही जगदीश्वर हैं

आराध्य देव समस्त देवों के

इस जगत के आदि, मध्य

और अन्त आप से ही हैं होते |


करके स्वीकार आप गुणों को

ग्रहण करें अवतार बहुत से

दर्शन मैं करता रहा हूँ

जो लीलाएं आप हैं करते।


स्त्री रूप जो ग्रहण किया था आपने

दर्शन करना चाहूँ उसका भी

जिससे दैत्यों को मोहित करके

अमृत पिलाया देवताओं को सभी।


श्री शुकदेवजी कहते हैं परीक्षित

ऐसा कहा जब शंकर जी ने

विष्णु भगवान् तब शंकर जी से

गंभीर वाणी में ये थे बोले।


विष्णु भगवान् कहें, शंकर जी

अमृत चला गया था दैत्यों के हाथ में

काम बनाने देवताओं का मैंने

स्त्री रूप धारण किया था उस समय।


देवशिरोमणि, आप देखना चाहें

जो रूप, मैं दिखाऊंगा उसे

परन्तु उत्तेजित करे कामभाव ये

आदरणीय ये कामी पुरुषों के लिए।


श्री शुकदेव जी कहें, ऐसा कहते ही

अंतर्धान हो गए विष्णु जी

शंकर सती के साथ बैठे वहीँ

और चारों और दृष्टि दौड़ाई।


इतने में उन्होंने देखा 

सामने एक सुंदर उपवन है 

बहुत ही मनमोहक दृश्य है 

भांति भांति के वृक्ष लगे हैं। 


सुंदर स्त्री एक उस उपवन में 

गेंद उछाल उछाल कर खेल रही 

अपने सुकुमार चरणों से 

ठुमक ठुमक कर वो है चल रही। 


कुछ उद्दिग्न भी हो रही वो 

बड़ी बड़ी चंचल आँखें उसकी 

वह सुंदरी अपनी माया से 

सारे जगत को मोहित कर रही। 


खेलते खेलते सलज्ज भाव से 

तिरछी नजर से देखा शंकर जी को 

हाथ से निकला मन शंकर जी का 

निहारने लग गए वो मोहिनी को। 


उसकी चितवन के रस में डूबकर 

इतने विह्वल हो गए वो 

अपने आप की भी सुध न रही थी 

भूल गए सती और गणों को। 


आसक्त जान पड़ीं मोहिनी भी अपने प्रति

उसकी और आकृष्ट हुए शंकर 

उसने विवेक छीन लिया शंकर का 

हाव भाव से उसके वो, हो गए थे कामातुर। 


सती के सामने ही लज्जा छोड़कर 

मोहिनी की और चल पड़े वो 

शंकर जी उनकी और आ रहे 

ये देख, लज्जा आई मोहिनी को। 


एक वृक्ष से दुसरे वृक्ष की 

आड़ में जाकर छुप जाती थीं 

कामवश हो गए थे शंकर जी 

इन्द्रियां उनके वश में नहीं। 


मोहिनी के पीछे दौड़ते 

उन्होंने आखिर उसे पकड़ लिया 

इच्छा न होने पर भी उसकी 

दोनों भुजाओं में जकड़ लिया। 


छुड़ाने की चेष्टा करे मोहिनी 

छीना झपटी से बाल बिखर गए 

वास्तव में वो माया भगवान् की 

भाग गयी शंकर से छूट के। 


शंकर पीछे पीछे भागे 

मोहिनी वेषधारी विष्णु के 

शंकर का वीर्य अमोघ है फिर भी 

स्खलित हो गया हरि की माया से। 


सोने चांदी की खानें बन गयीं 

जहाँ जहाँ ये वीर्य गिरा वहां

हे परीक्षित, पर्वत, वन, उपवन 

शंकर ने पीछा किया मोहिनी का। 


परीक्षित, वीर्यपात होने पर 

अपनी स्मृति आई शंकर जी को 

देखें की भगवान् की माया ने 

खूब छकाया आज है उनको। 


भगवान् की शक्तिओं को वो जानें 

जानें की पार कोई पा न सकता 

प्रभु ने भी पुरुष शरीर धारण कर लिया 

शंकर जी से तब था ये कहा। 


भगवान् ने कहा, देवशिरोमणि 

मेरी माया से विमोहित होकर भी 

स्थित हो गए आप अपनी निष्ठा में 

बात है ये बड़े आनन्द की। 


भला आपके अतिरिक्त कौन पुरुष है 

जो एक बार मेरी माया के 

फंदे में फंसकर भी वो 

स्वयं ही उससे निकल सके। 


मेरी ये माया यद्यपि 

बड़े बड़ों को मोहित कर देती 

फिर भी ये माया आपको 

कभी नहीं मोहित करेगी। 


श्री शुकदेव जी कहें, परीक्षित जब 

भगवान् ने सत्कार किया शंकर जी का तो 

गणों के साथ कैलाश चले गए 

तब उनसे विदा लेकर वो। 


बड़े बड़े ऋषिओं की सभा में 

अपनी अर्धांगिनी सती देवी से 

मायामयी मोहिनी का इस प्रकार 

वर्णन किया बड़े प्रेम से। 


कहें देवी तुमने परम परमेश्वर 

भगवान् विष्णु की माया देखि 

सवतंत्र मैं, कई विद्याओं का स्वामी 

मोहित हो जाता उस माया से फिर भी। 


फिर दुसरे जीव तो परतंत्र हैं 

इससे वो तो मोहित होंगे ही 

आराधना करता हूँ मैं 

इन साक्षात् भगवान् पुरुष की। 


न तो काल ही इन्हें अपनी 

सीमा में बाँध सकता है 

और न ही वेद कोई 

इनका वर्णन कर सकता है। 


अनंत और अनिर्वचनीय हैं

वास्तविक स्वरुप जो इनका 

उनके चरणकमलों को कभी कोई 

दुष्ट प्राप्त नहीं कर सकता।


 वो तो प्राप्त होते हैं बस 

भक्ति भाव से युक्त पुरुषों को 

समस्त कामनाएं पूरी करते उनकी 

चरणों की शरण ग्रहण करे जो ।



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