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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -२०६; श्री कृष्ण का ऊखल से बाँधा जाना

श्रीमद्भागवत -२०६; श्री कृष्ण का ऊखल से बाँधा जाना

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित 

एक बार माता यशोदा जी 

घर में माखन मथ रही थीं 

गोपिआँ भी उनके साथ थीं।


उसी समय श्री कृष्ण आ गए 

माँ के पास दूध पीने के लिए 

दही की मथानी पकड़ ली 

रोक दिया दही मथने से उन्हें।


गोद में माता के चढ़ गए 

दूध पिलाने लगीं माता भी उन्हें 

अंगीठी पर जो दूध रखा था 

उबाल आ गया उसे इतने में।


ये देख यशोदा ने कृष्ण को 

छोड़ा वहीँ, दूध उतारने चली गयीं 

श्री कृष्ण को कुछ क्रोध आ गया 

दूध दही की मटकी फोड़ दी।


बनावटी आंसू आँखों में भरकर 

अंदर जाकर माखन खाने लगे 

दूध उतार यशोदा जब आईं 

देखा कृष्ण वहां पर नहीं थे।


दही का मटका टूटा पड़ा वहां 

इधर उधर देखें कृष्ण को 

एक उलटे पड़े ऊखल पर 

खड़े देखा यशोदा ने उनको।


छींके पर से माखन खा रहे 

बंदरों को भी बाँट रहे वो 

यशोदा उनके पास पहुँच गयीं 

पकड़ना चाहा था फिर उनको।


श्री कृष्ण ने देखा कि माता 

छड़ी लिए मेरी और आ रही 

झट से औखली से कूद कर 

भागे वो, माता पीछे पीछे थी भागीं।


ज्यों त्यों कर पकड़ लिया कृष्ण को 

डराने धमकाने लगीं उन्हें 

रोने लगे वे, आँखें मलने से 

स्याही फैल गयी मुख पर कृष्ण के।


डरे हुए और व्याकुल दीख रहे वो 

ये जब देखा था माता ने 

वात्सल्य स्नेह उमड़ आया था 

छड़ी फैक दी तभी उन्होंने।


इसके बाद सोचा माता ने 

शरारती, बड़ा नटखट हो गया ये 

अब रस्सी से बाँध दूँ इसे 

ताकि ये अब भाग न सके।


ऊखल से जब बांधने लगीं 

अपने नटखट बालक कृष्ण को 

दो अंगुल छोटी पड गयी 

उनके पास थी रस्सी जो।


दूसरी रस्सी लाकर जोड़ी तो 

वह भी छोटी पड गयी थी 

नयी नयी रस्सी जोड़ती जातीं वो 

हर बार दो अंगुल कम पड जाती।


घर की सारी रस्सियाँ जोड़ दीं 

फिर भी कृष्ण को बाँध न सकीं 

ये देख मुस्कुराने लगीं 

वहां पर खड़ी जो गोपियां थीं।


माता भी आश्चर्यचकित हो गयीं 

और कृष्ण ने जब देखा ये 

कि माता पसीने से लथपथ हो रही 

स्वयं ही बंधन में बंध गए।


परीक्षीत, भगवान् तो परम स्वतंत्र हैं 

फिर भी ऐसे बंधकर उन्होंने 

दिखला दिया था कि मैं अपने 

प्रेमी भक्तों के हूँ वश में।


ग्वालिन यशोदा ने श्री कृष्ण से 

कृपा प्रसाद प्राप्त किया जो 

ना मिला पुत्र होने पर ब्रह्मा को 

आत्मा होने पर भी न मिला शंकर को।


वक्षस्थल पर रहने वाली लक्ष्मी जी 

अर्धांगिनी होने पर भी न पा सकीं 

इसके बाद नंदरानी यशोदा 

घर के काम करने चली गयीं।


भगवान् श्यामसुंदर ने तब 

मुक्ति देने की सोची वृक्षों को 

पहले ये दोनों अर्जुन वृक्ष 

यक्षराज कुबेर के पुत्र थे वो।


नाम उनका नलकूबर और मणिग्रीव

धन ऐश्वर्य सौंदर्य से पूर्ण थे 

इनका घमंड देख नारद ने 

शाप दिया और वे वृक्ष हो गए।



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