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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२६४; द्विविद का उद्धार

श्रीमद्भागवत-२६४; द्विविद का उद्धार

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राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन

सर्वशक्तिमान, अनन्त बलराम जी

उनकी एक एक लीला अलौकिक

अद्भुत कर्म उनके और कई ।


उन्हें मैं हूँ सुनना चाहता

श्री शुकदेव जी ने तब कहा ये

द्विविद नाम का एक वानर था

भोमासुर मित्र थे उसके ।


सुग्रीव का मंत्री था वो

और भाई था मैन्द का

जब उसने सुना कि कृष्ण ने

भोमासुर का वध कर दिया ।


अपने मित्र की मित्रता के

ऋण से उऋण होने के लिए

वो तब उतारू हो गया

बदला लेने के लिए कृष्ण से ।


बड़े बड़े नगरों, गाँवों और

अहीरों की बस्तियों में आग लगाता

विशेषकर काठीयावाड देश में

जहां श्री कृष्ण का निवास था ।


दस हज़ार हाथियों का बल उसमें

समुंदर में खड़ा होकर जब वो

हाथों से था जल उछलता

डूबा देता देश, समुंदर तट पर जो ।


ऋषियों मुनियों के आश्रमों में

उजाड़ देता वनस्पतियों को

दूषित करता मल मूत्र से

यज्ञ सम्बन्धी अग्नियों को ।


स्त्रियों, पुरुषों को ले जाता

डाल देता पहाड़ों की गुफा में

रैवतक पर्वत पर गया एक दिन वो

वहाँ जाकर उसने देखा ये ।


कि यदुवंश शिरोमणि श्री बलराम जी

विराजमान स्त्रियों के बीच में

स्त्रियों की अवहेलना करके

किलकारी मार डराने लगा उन्हें ।


गरजकर मुँह बनाता, घुड़कता

बलराम जी तब क्रोधित हो गए

एक पत्थर फेंका था उसपर

बचा लिया अपने को द्विविद ने ।


फोड़ डाला मधु कलश और

स्त्रियों के वस्र फाड़ डाले उसने

अत्यन्त क्रोधित हुए बलराम जी

हल, मूसल उठाया क्रोध में ।


द्विविद भी बड़ा बलवान था

शाल का पेड़ उखाड़कर फेंका

बलराम जी ने उसे पकड़कर

मूसल से उसपर प्रहार किया ।


द्विविद का मस्तक फट गया

पेड़ फेंकता रहा फिर भी वो

सारे वृक्ष जब ख़त्म हो गए

फेंकने लगा चट्टानों को ।


चूर चूर कर दिया उनको

मूसल से बलराम जी ने

तब छाती पर प्रहार कर दिया

द्विविद ने अपनी बाहों से ।


क्रुद्ध होकर बलराम जी ने

हंसली पर प्रहार किया उसके

धरती पर गिरकर मार गया वो

देवता फूलों की वर्षा करने लगे ।


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