श्रीमद्भागवत -२२२ ;गोवर्धन धारण
श्रीमद्भागवत -२२२ ;गोवर्धन धारण
इंद्र को जब पता चला कि
पूजा बंद कर दी मेरी गोपों ने
नंदबाबा आदि गोपों पर
बहुत क्रोधित हो गए वे।
पद का अपने घमंड था उनको
अपने को त्रिलोकी का ईश्वर मानते
प्रलय करने वाले मेघों को
क्रोध में तिलमिलाकर उन्होंने।
ब्रज में चढ़ाई की आज्ञा दी
कहा, घमंड चूर करो ग्वालों का
साधारण मनुष्य कृष्ण के बल पर
इन्होने मेरा अपमान कर डाला।
कृष्ण बहुत अभिमानी, मूर्ख है
ज्ञानी समझता बड़ा अपने को
इन अहीरों ने अवहेलना की मेरी
मानकर उसकी बातों को।
एक तो धन के नशे में चूर वे
उसपर बढ़ावा दिया कृष्ण ने उनको
इनके घमंड और हेकड़ी को तुम
जाकर धूल में मिला दो।
पशुओं का भी संहार कर डालो
पीछे पीछे आता हूँ मैं भी
नन्द के व्रज का नाश करने को
साथ आएंगे मरुद्गण भी।
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
ऐसी आज्ञा देकर इंद्र ने
प्रलय के मेघों के बंधन खोल दिए
चढ़ आये व्रज में वे बड़े वेग से।
मूसलाधार वर्षा करने लगे
करें वो पीड़ित सारे व्रज को
बिजली चारों और चमक रही
टकराएं बादल आपस में।
प्रचंड आंधी के साथ बड़े बड़े
ओले बरसाने लगे बादल ये
पानी से भर गया कोना कोना
पशु ठिठुरने, कांपने लगे।
ग्वाल. गोपियाँ भी ठंड के
मारे थीं व्याकुल हो गयीं
सभी ने फिर अपने रक्षक
भगवान् कृष्ण की शरण ली।
कहें, प्यारे श्री कृष्ण तुम
बड़े ही भाग्यवान हो
अब तो केवल तुम्हारे ही
भाग्य से हमारी रक्षा हो।
इस समय गोकुल के प्रभु
एक मात्र रक्षक तुम्ही हो
इंद्र के क्रोध से बस तुम्ही
हमारी रक्षा कर सकते हो।
भगवान् समझ गए कि ये सारी
करतूत है देवराज इंद्र की
इंद्र का ऐश्वर्य, घमंड इंद्र का
चूर चूर करना मुझको ही।
सत्वप्रधान होते देवता तो
अभिमान ऐश्वर्य और पद का
इन्हें नहीं था होना चाहिए
मान भंग करूं मैं इन दुष्टों का।
व्रज को नष्ट ये करना चाहते
मेरे आश्रित है सारा व्रज ये
एकमात्र मैं रक्षक इनका
रक्षा करूँ इनकी योगमाया से।
संतों की रक्षा मेरा व्रत है
पालन का अवसर आ पहुंचा उसके
एक हाथ से गिरिराज उखाड़ लिया
इस प्रकार कहकर भगवान् ने।
खेल खेल में उसे उखाड़ा था
और उसे फिर धारण कर लिया
और सब गोपों को उन्होंने
उसके नीचे आने को कहा।
गौओं और सामग्रियों को लेकर
पर्वत के गड्ढे में सब आ गए
सात दिनों तक लगातार फिर
पर्वत को उठाये रखा उन्होंने।
एक डग भी इधर उधर नहीं हुए
कृष्ण का प्रभाव देखा इंद्र ने
आश्चर्य का ठिकाना न रहा
और वो भौंचके रह गए।
मेघों को वर्षा करने से रोक दिया
और वर्षा बंद हुई देखकर
कृष्ण ने गोपों से कहा कि
आ जाओ सब बाहर निकलकर।
जब सब लोग बाहर निकल गए
गिरिराज को स्थान पर रख दिया उसके
सत्कार किया गोपों ने उनका
ह्रदय से लगाया सबने उन्हें।
बड़ी बूढ़ी गोपिओं ने फिर
मंगल तिलक किया था उनका
देवता, गन्धर्व स्तुति करने लगे
कृष्ण ने तब रुख किया व्रज का।