STORYMIRROR

Rashmi Sthapak

Classics

4  

Rashmi Sthapak

Classics

अमृत बरसे

अमृत बरसे

1 min
372


तिल-तिल कर तपती धरा,

जलती है दिन-रात। 

जले बिना मिलती नहीं,

जल की ये सौगात।।


बादल की पाती लिए,

हवा चली मदहोश।

नदियों को है थामना,

अब लहरों का जोश।।


अमृत ले आए सखी,

काले घन चितचोर।

धरती के आनंद का,

कोई ओर न छोर।।


व्याकुल विरहन को मिली,

इक बादल की आस।

साजन तो भूले सखी,

सूना है मधुमास।।


पवन दिवानी बावरी,

फिरती गाती छंद। 

झूम-झूम मौसम लिखे,

प्रीत भरे अनुबंध।।


हरे-हरे सब खेत हों,

भरे-भरे खलिहान।

हाथ जोड़ भगवान से,

माँगे यही किसान।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics