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Rashmi Sthapak

Others

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Rashmi Sthapak

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युद्ध

युद्ध

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सदा छिपी है युद्ध में,

चिर अर्जुन की पीर।

खुद के ही हथियार से,

खुद पर चलते तीर।।

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पछतावे से कब मिटे,

अंतर्मन के द्वेष।

धूल धुआँ बेचारगी,

रहता बस है शेष।।

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 हासिल किसको क्या हुआ,

 कर लें आज हिसाब।

काँटों के बदले कभी,

मिलते नहीं गुलाब।।

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माँ धरती अंबर पिता,

हम सब नातेदार।

सब बैठे इक नाव में,

सबकी इक पतवार।।

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महलों के पत्थर कहें,

बात यही गम्भीर।

 राजा भी वैसे गए,

जैसे गए फ़कीर।।

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छोटी-सी है ज़िंदगी,

इस का यही हिसाब।

 पन्ने-पन्ने झर रही,

सांसों भरी किताब।।

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 घुटनों के बल बैठ कर,

झरते आँसू रोक।

शर्मिंदा था जीतकर,

हारा हुआ अशोक।।

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फ़ानी इस संसार में,

क्यों लड़ते हम युद्ध।

याद फिर आने लगे,

जग को गौतम बुद्ध।।

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