बसंत
बसंत
वसंत
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अनसुने तराने
पंछी-पंछी गुनगुनाता है
सफेद सफेद फूल भी
सतरंगी बन जाता है
कितने रंग बगराता है
वसंत जब जंगल में आता है
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खुद की ओढ़नी से
खुद को ही छिपाती है
एक लड़की जब
बे बात ही शरमाती है
कितने ढंग बगराता है
वसंत जब मन में आता है
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बिन मौसम छाती है घटा
चाँद भी फिरता बांवरा
थोड़ी सी चांदनी अपनी
किसी आंगन भूल आता है
कितनी उमंग बगराता है
वसंत जब जीवन में आता है
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कोई रचता नहीं अब गीत है
हम निवाला है न मनमीत है
नई हवा की नई रीत है
तेरे शहर में तो ये एक तारीख़ है
रंग बेरंग बगराता है
वसंत जब बस कैलेंडर में आता है....
