दोहे शीत के
दोहे शीत के
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चादर ओढ़े शीत की,
धरती हुई निहाल।
बादल सूरज रच रहे,
अद्भुत मायाजाल।।
शीतल-शीतल चाँद की,
उजली-उजली रात।
जादू है यह मौसमी,
या नभ की सौगात।।
फूल खिले अनजान-से,
ठंडी चले बयार।
रंग-बिरंगी तितलियाँ,
उड़ती फिरे हज़ार।।
थिरक-थिरक पागल हवा,
खूब मचाए शोर।
छटा सुहानी शीत की,
अलबेली चितचोर।।
ताल-ताल पंकज खिले,
फूले गुल कचनार।
चंपा जूही चाँदनी,
महके हरसिंगार।।
सुख-दुख बाँटें महफिलें,
जलने लगे अलाव।
अंगना आई धूप के,
सोने जैसे भाव।।
