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Rashmi Sthapak

Others

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Rashmi Sthapak

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दोहे शीत के

दोहे शीत के

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चादर ओढ़े शीत की,

धरती हुई निहाल।

बादल सूरज रच रहे,

अद्भुत मायाजाल।।


शीतल-शीतल चाँद की,

उजली-उजली रात।

जादू है यह मौसमी,

या नभ की सौगात।।


फूल खिले अनजान-से,

ठंडी चले बयार।

रंग-बिरंगी तितलियाँ,

उड़ती फिरे हज़ार।।


थिरक-थिरक पागल हवा,

खूब मचाए शोर।

छटा सुहानी शीत की,

अलबेली चितचोर।।


ताल-ताल पंकज खिले,

फूले गुल कचनार। 

चंपा जूही चाँदनी,

महके हरसिंगार।।


सुख-दुख बाँटें महफिलें,

जलने लगे अलाव।

अंगना आई धूप के,

सोने जैसे भाव।।



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