चिड़िया
चिड़िया
1 min
346
हरी-भरी बगिया रहे,
बसे रहें घर-द्वार।
चुग-चुग आँगन डोलती,
चिड़िया बारंबार ।।
चहक-चहक वह डोलती,
गाती मंगल गान।
दाना खाकर एक वह,
देती सौ वरदान ।।
खत्म हुई अब रौनकें,
सूखा हरसिंगार।
पंछी अब आते नहीं,
सूने हैं घर द्वार ।।
चकाचौंध में भूलते,
हरियाली को लोग।
पंछी को बेघर करें,
अंतहीन ये भोग ।।
अजब धुंध है छा गई,
सूने हैं वनग्राम।
सूखी यमुना देखकर,
लौट गए अब श्याम ।।
आँगन-आँगन लौट कर,
चिड़िया छेड़ो राग।
टूटे घर व्याकुल नज़र,
खाली-खाली बाग ।।
