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Rashmi Sthapak

Others

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Rashmi Sthapak

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दोहा-दरबार

दोहा-दरबार

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जाड़े वाली धूप में,

तितली के संवाद।

सेवंती पर झूमकर,

भँवरें करते नाद।।

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दीवाना मौसम हुआ,

कब देखे दिन-रात।।

लहर-लहर करता फिरे,

भूली-बिसरी बात।।

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लिखकर कागज पर रखा,

शब्द-शब्द अनुराग।

सर्द हवा थोड़ी रखी,

थोड़ी रख दी आग।।

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मुट्ठी भर सपने रखे,

प्रीत भरे कुछ छंद।

अल्हड़-सी बातें रखीं,

शिकवे भी थे चंद।।

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सजा-सजा पाती रखी,

लिख दी उसके नाम।

वाकिफ़ थे हम भी कहाँ,

होगा क्या अंजाम।।

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सर्द हवा ने खोल दी,

जो थी बंद किताब।

उठ बैठे फिर नींद से,

सोते- सोते ख़्वाब।।

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पल-छिन के इस खेल का,

सदियाँ करें हिसाब।।

उलफ़त में मिलते नहीं,

सबको यहाँ जवाब।।

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